1222-1222-1222-1222
दिखाकर तुम हथेली की लकीरों को डराओ मत
रियाज़त से बदल देंगे नसीबों को डराओ मत रियाज़त=परिश्रम
तबस्सुम के दिये की लौ गला देगी हर इक ज़ंजीर
शब-ए-गम की तवालत से असीरों को डराओ मत तवालत=लम्बाई, असीर=कैदी
ये जन्नत की हक़ीक़त भी बख़ूबी जानते हैं जी
दिखाकर डर जहन्नुम का ग़रीबों को डराओ मत
मज़ा आने लगा है अब सभी को दर्द-ए-उल्फ़त का
शिफ़ा का नाम लेकर तुम मरीज़ों को डराओ मत
अनय के सामने हरगिज न सिर अपना झुकायेंगे
दिखाकर तेग की ताकत फ़क़ीरों को डराओ मत
जुनूं है बादबां अपना तो ज़िद पतवार है अपनी
तलातुम से निपट लेंगे सफ़ीनों को डराओ मत तलातुम=जलप्लावन
अँधेरे में शराफ़त भी हुई ‘खुरशीद’ जी उरयाँ उरयाँ=नग्न
उजाले के मुसाहिब बन शरीफ़ों को डराओ मत
.
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय श्याम नारायण जी ,हार्दिक आभार |सादर |
आदरणीय गिरिराज सर ,ग़ज़ल पर आपके आशीर्वाद की मुहर लग गई ,बस ग़ज़ल सार्थक हो गई |सादर अभिनन्दन |
आदरणीय मिथिलेश जी , आदरणीय आशुतोष जी ,आपकी मुहब्बत मेरे लिए अनमोल है |सादर आभार |
आदरणीय रामशिरोमणि पाठक साहब . सोमेश भाई जी ,ज़र्रानवाज़ी का शुक्रिया |सादर
आदरणीय हरिप्रकाश सर ,आदरणीय विजय शंकर सर ,आपके स्नेह का ह्रदय से आभारी हूं |सादर |
आदरणीय खुरशीद भाई , हमेशा की तरह फिर एक बेहतरीन गज़ल पढ़वाई आपने , हर एक शे र के लिये आपको दिली मुबारक बाद ।
अँधेरे में शराफ़त भी हुई ‘खुरशीद’ जी उरयाँ
उजाले के मुसाहिब बन शरीफ़ों को डराओ मत -- सबसे बेहतर !! बहुत बहुत बधाई ।
आदरणीय खुर्शीद जी इस बह पर लिखी ग़ज़ल को gउन्गुनाने में बिशेष आनंद आता है ..इस रचना की गेयता और भाव मन को छूते हैं ..बहुत ही शानदार रचना ..तमाम उर्दू के शब्दों के प्रयोग सीखने का मौका मिला .. हर शेर उम्दा है ..मेरी तरफ से ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर
दिखाकर तुम हथेली की लकीरों को डराओ मत
रियाज़त से बदल देंगे नसीबों को डराओ मत
सुंदर गज़ल हुई भाई जी |अपनी एक पुरानी रचना स्मरण हो आई
क्या है यहाँ विधि का लेखा
कैसे बतलाए हाथों की रेखा
स्मृति-पटल पर चिन्ह गहरे
भाग्य-उदय से पूर्व अँधेरे
पौरुष मन का ललकार रहा
तू बिना लड़े क्यूँ हार रहा ?
तू ही रूद्र तू ही ब्रम्हा है
तेरी रचना तो देव यहाँ है
मत मान क्या है भाग्य-लकीरे
तू चलता रह धीरे-धीरे
मंजिल तेरा वरन करेगी
सफ़लता तेरे कदम चूमेगी
खुबसूरत ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन | |
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