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२१२२ — १२१२ — ११२(२२)

खिल रहे हैं सुमन बहारों में

झूमता है पवन बहारों में

 

ओढ़कर फागुनी चुनर देखो

सज गया है चमन बहारों में

 

आइने की तरह चमकता है

निखरा निखरा गगन बहारों में

 

यूँ तो संजीदा हूं बहुत यारों

हो गया शोख़ मन बहारों में

 

देखते हैं खिलाता है क्या गुल

आपका आगमन बहारों में

 

हो धनुष कामदेव का जैसे

तेरे तीखे नयन बहारों में

 

घुल गई है फिज़ा में मदिरा सी

हो गई सुध हिरन बहारों में

 

धूप लगती है शाल जैसी

है सुहानी तपन बहारों में

 

होश ‘खुरशीद’ जी न खो देना

रखना काबू में मन बहारों में

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by khursheed khairadi on February 10, 2015 at 11:27pm

आदरणीय विजयशंकर सर , आदरणीय सर्वेश कुमार जी , आदरणीय दिनेश जी ,आप सभी का ह्रदय से आभार |सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 10, 2015 at 5:01am
बहारों में, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल, आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी, बधाई , सादर।
Comment by सर्वेश कुमार मिश्र on February 10, 2015 at 3:54am

आदरणीय खुर्शीदजी बधाई स्वीकार करें...

Comment by दिनेश कुमार on February 9, 2015 at 5:09pm
बेहतरीन ग़ज़ल हुई है आ खुर्शीद भाई, पढ़ कर मजा आ गया। हर एक शेर को पढ़ कर दिल से वाह वाह निकल रही है। लाजवाब
Comment by khursheed khairadi on February 9, 2015 at 2:03pm
आदरणीय गिरिराज सर,आदरणीय मिथिलेश जी, आदरणीय गुमनाम जी,आदरणीय उमेश जी,आदरणीय हरिप्रकाश जी,आदरणीया प्रतिभा जी,आदरणीय आशुतोष जी , आप सभी का ह्दय की गहराइयो से आभार ।मंच की सजग सलाह पर छटवें शेर को
"एक अबरूकमाँ हसीना का
भा गया बाँकपन बहारों में"
कर रहा हूं।आप सभी के स्नेह का चिरऋणी_
खुरशीद । सादर आभार।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2015 at 8:49pm

धूप लगती है शाल जैसी......बहर  के हिसाब से कुछ छूट रहा है 

हो धनुष कामदेव का जैस

तेरे तीखे नयन बहारों में.....धनुष और तीखे नयन ..थोड़ी असुबिधा में हूँ   हों करके पढने से सही लग रहा है लेकिन बहुतसारे धनुष rहोना भी सही नहीं लग रहा है .आदरणीय सर हो सकता है मैं समझ न पा रहा हूँ अन्यथा न लीगियेगा ..बस एक संशय था इसलिए लिखा ...इस शानदार रचना पर हार्दिक बधाई सादर 

Comment by umesh katara on February 8, 2015 at 8:00pm

वाह सर बेहतरीन

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 8, 2015 at 7:46pm

वाह सर मिथिलेश जी ने भरपूर कह दिया है बहुत खूब ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकारें

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 8, 2015 at 7:45pm
वाह सर मिथिलेश जी ने भरपूर कह दिया है बहुत खूब ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकारें
Comment by Hari Prakash Dubey on February 7, 2015 at 11:24pm

आदरणीय  ख़ुरशीद जी बहुत शानदार ,

यूँ तो संजीदा हूं बहुत यारों

हो गया शोख़ मन बहारों में.....संपूर्ण रचना सुन्दर है , हार्दिक बधाई आपको ! सादर 

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