मातृधरा को शीश नवाने फिर आऊँगा
जननी तेरा कर्ज़ चुकाने फिर आऊँगा
चंदन जैसी महक रही है जो साँसों में
उस माटी से तिलक लगाने फिर आऊँगा
आँसू पीकर खार जमा जिनके सीनों में
उन खेतों में धान उगाने फिर आऊँगा
इक दिन तजकर परदेशों का बेगानापन
आखिर अपने ठौर ठिकाने फिर आऊँगा
गोपालों के हँसी ठहाके यादों में हैं
चौपालों की शाम सजाने फिर आऊँगा
खाट मूँज की छाँव नीम की थका हुआ तन
जेठ दुपहरी में सुस्ताने फिर आऊँगा
वन्य फलों की देसी लज़्ज़त होठों पर है
बोर मतीरे तेंदू खाने फिर आऊँगा
ताऊ चाचा बाबा खेले जिस आँगन में
उस आँगन में दोड़ लगाने फिर आऊँगा
सुख का सहरा जब इस मन को झुलसायेगा
अमराई में राहत पाने फिर आऊँगा
भेद खुलेगा मृगतृष्णाओं का भी इक दिन
पनघट पर ही प्यास बुझाने फिर आऊँगा
छोर गगन का छू पायेगी क्या परवाज़ें
फुनगी पर ही नीड़ बनाने फिर आऊँगा
शहरी बाना तन पर लेकिन मन देहाती
तन मन का यह भेद मिटाने फिर आऊँगा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीया वंदना जी ,सादर आभार |
वाह इतनी खूबसूरत प्रस्तुति सादर नमन आदरणीय
आदरणीय गोपाल नारायण सर ,आपके आशीर्वाद से पंक्तियाँ संवर गई है |सादर आभार |
आदरणीय आशुतोष सर ,बहुत बहुत आभार|स्नेह बनाये रखियेगा |सादर
आदरणीया सविता जी ,आदरणीया राजेश कुमारी जी ,हार्दिक आभार |सादर |
आदरणीय सौरभ सर . छंद और ग़ज़ल संबधी आपकी पूर्व शंकाओं और अपने अल्पज्ञान के चलते मैंने इस ग़ज़ल को गीतिका नाम दिया है |किन्तु आपके इस आशीर्वचन "सौ-सौ ग़ज़लें क़ुर्बान " ने मेरे उत्साह को सौ सौ पर लगा दिए है |
आशीषों की छाँव सुहानी तव चरणों में
ग़ज़लें लेकर शीश झुकाने फिर आऊँगा |सादर |
प्रस्तुति पर सदा की तरह नम हूँ. आपके शब्द-शब्द से मेरा गाँव रुपायित हो रहा है जो बस स्मृतियों में ज़िन्दा है. फफनती हूक को मिलता हर शब्द आग्रही है, आदरणीय.
सोंधे-सोंधे शब्द तुम्हारे नम करते हैं
शेर-शेर पर दाद लुटाने फिर आऊँगा
सौ-सौ ग़ज़लें क़ुर्बान !
आदरणीय खुर्शीद जी आपकी रचनाओं को पढने से पढने के आनंद के साथ ज्ञान समृद्धि में भी बृद्धि होती है इस सुंदर रचना के लिए तहे दिल बधाई सादे
आदरणीय खैरादी जी
जी चाहता है आपकी कलम चूम लूं i वाह---
खाट मूँज की छाँव नीम की थका हुआ तन----इस पंक्ति में प्रवाह कुछ कम लगता हैi यदि ऐसा कहें --खाट मूँज की छाँव नीम की गंध पवन की
सुख का सहरा जब इस मन को झुलसायेगा i यदि ऐसा कहें -झुलसायेगा सुख का सहरा जब इस मन को
उक्त सुझाव मेरा मनोरंजन है i आप पर बाध्यकारी नहीं i बहुत ही सुन्दर रचना के लिया आपको फिर से बधाई i
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