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ग़ज़ल: दिल ए नादान से हरगिज़ न संभाली जाए

दिल ए नादान से हरगिज़ न संभाली जाए 
आरजू ऐसी कोई दिल में न पाली जाए

जान मांगी है तो अपनी भी यही कोशिश है 
ऐ मेरे दोस्त तेरी बात न खाली जाए

अपने हाथों के करिश्मे पे भरोसा करके 
अपनी सोई हुई तक़दीर जगा ली जाए

आज फिर छत पे मेरा चाँद नज़र आया है 
क्यूँ न फिर आज चलो ईद मना ली जाए

घर में दीवार उठी है तो कोई बात नहीं 
ऐसा करते हैं कि छत अपनी मिला ली जाए

जब किसी और के बस में नहीं है खुश रखना 
खुद ही खुश रहने की तरकीब निकाली जाए

जब किसी को भी गुनाहों की सज़ा देनी हो
इक नज़र अपने गुनाहों पे भी डाली जाए

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Alok Rawat on November 16, 2017 at 11:52am

आदरणीय मंडल जी  शुक्रिया।  आभारी हूँ. 

Comment by Alok Rawat on November 16, 2017 at 11:15am

आदरणीय बृजेश जी आप लोगों की ज़र्रानवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया। 

Comment by Alok Rawat on November 16, 2017 at 11:08am

आदरणीय  सुरेन्द्रजी आपका बहुत बहुत धन्यवाद।  आभारी हूँ। 

Comment by नाथ सोनांचली on November 16, 2017 at 4:41am
आद0 आलोक रावत जी सादर अभिवादन, बढ़िया ख्याल, बढ़िया अशआर,बधाई आपको। आद0 समर साहब के इस्लाह से बहुत कुछ हमे भी सीखने को मिला, सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 15, 2017 at 10:49pm
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय..सादर
Comment by Kalipad Prasad Mandal on November 15, 2017 at 8:08pm

आद आलोक रावत जी ,आदाब बहुत खुबसूरत ग़ज़ल हुई| बधाई स्वीकार करें | आ समीर कबीर साब की टिप्पणी से मुझे भी शिक्षा मिली  

Comment by Alok Rawat on November 15, 2017 at 5:33pm

आदरणीय अजय तिवारी जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया। 

Comment by Ajay Tiwari on November 15, 2017 at 2:04pm

आदरणीय आलोक जी,

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. हार्दिक शुभकामनाएं.

सादर  

Comment by Alok Rawat on November 15, 2017 at 11:05am

आदरणीय अजय शर्मा जी एवं सालिम साहब आप लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया। ये तो सच है कि हमें एक उम्दा और समृद्ध फोरम मिला है और सभी बहुत प्यार से इस्लाह करते हैं। सभी का ह्रदय से आभारी हूँ। 

Comment by Ajay Kumar Sharma on November 15, 2017 at 7:39am
बहुत सुन्दर गजल..

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