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तमन्ना है मेरी दिलबर मुझे थोड़ी वफ़ा दे दो।
महक जाऊ मैं गुलशन में मुझे ऐसी फिजा दे दो।।
दिए हैं लाख दुनियां ने मुझे जो ज़ख़्म सीने पर।
न हो अब दर्द मुझको यार कुछ ऐसी दवा दे दो।।
किया है जुर्म हमने क्या मुझे भी तो पता चलता।
अगर माफ़ी न मिल सकती मुझे हमदम सज़ा दे दो।।
हुई है बेवफाई मुझ से भी अब क्या जहां वालो।
अगर लगता तुम्हे ऐसा मुझे उसकी सज़ा दे दो।।
जुदा होकर मुझे जीना नहीं उनके बिना हरगिज़।
मिले मेरा सनम मुझको , मुझे ऐसी दुआ दे दो।।
केतन परमार (अनजान )
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
sUKRIYAA SABHI GUNIJANO KAA
किया है जुर्म हमने क्या मुझे भी तो पता चलता।
अगर माफ़ी न मिल सकती मुझे हमदम सज़ा दे दो।।
बढ़िया ग़ज़ल
बहुत ही गंभीर प्रयास किया है आपने.ढेर सारी बधाइयाँ.
सुधी पाठकों के कहे पर ध्यान दें और तदनुरूप अनुसरण करें
शुभम्
Shijju ji apki umido pe khara utarne ki puri koshish hogi sukriya
केतन जी आपकी कोशिश तो बहुत अच्छी है, आपसे उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं
आदरणीय केतन भाई जी प्रयास बहुत ही सुन्दर बन पड़ा है करते रहिये मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें
आ0केतन परमार भाई जी, सुन्दर गजल। तहेदिल से बधाई स्वीकारें। सादर,
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