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1....

शीतल मीठे नर्म से ,शब्दों को दो पाँव 
सद्भावों की ईंट से ,रचो प्रीत के गाँव 
रचो प्रीत के गाँव, फसल खुशियों की बोना 
नेह सुधा से सिक्त, रहे हर मन का कोना 
कंचन शुचिता धार ,अहम् का तज कर पीतल 
हरो ताप-संताप ,सलिल बन निर्मल शीतल ..

2.........

रिश्तों का आधार जब, होता है विश्वास 
मुकुलित होते पुष्प सम, लेकर प्रीत सुवास 
ले कर प्रीत सुवास ,स्नेहमय जीवन लखिये,
मणि समान अनमोल मान रिश्तों का रखिये,
मत समझो तुम खेल,जीत या फिर किश्तों का 
सहज सरल सन्देश ,सहेजो सुख रिश्तों का

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 5, 2012 at 9:38am

बहुत सुन्दर भाव पूर्ण कुण्डलिया रची है आपने बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 4, 2012 at 6:22pm

 

सुन्दर भाव यो कहिये सदभावों की छंद रचना | विशेषतः ले कर प्रीत सुवास ,स्नेहमय जीवन लखिये,

                                                                     मणि समान अनमोल मान रिश्तों का रखिये,

उत्तम सन्देश देती पंक्तिया - हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा अग्रवाल जी 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 4, 2012 at 6:11pm

बहुत सुन्दर शब्दों, सद्भावों, शिक्षा का सुन्दर सम्प्रेषण. 

सद्भावों की ईंट से ,रचो प्रीत के गाँव ....यह पंक्ति बहुत शानदार लगी .

हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 4, 2012 at 9:57am

वाह वाह सीमा जी  उन्नत भाव प्रणत ,सन्देश परक कुंडलियाँ रची हैं बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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