For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरी ज़िन्दगी के हसीन पल____Manoj kumar ahsaas

सुबह आयी
तेरे इंतज़ार की खुशबू लेकर
फिर तमाम दिन मुझे तेरा इंतज़ार रहा
शाम आयी
तेरे ना आने की मायूसी लेकर
फिर तमाम रात अंधेरो मे ढूढ़ा है तुझे
और बांधी है उम्मीद अगली सुबह से
मेरी ज़िन्दगी के हसीन पल
तू कहाँ था?
आज आया है
तो मेरी आँखों में चमक ही नहीं
बुझ गया है तेरा इंतज़ार
जला कर खुद को
तुझको पाने को लगाया था खुद को दाँव पर
ऐसा लगता है
तुझ को पाया है खोकर खुद को
मेरी ज़िन्दगी के हसीन पल
तू कहाँ था?
साथ लेकर तुझे
होकर जुदा अपनों से
मैं भटकता हूँ जैसे आज रेगिस्तानों में
इश्क़ के कतरे मुकद्दर में कभी थे ही नहीं
चंद समझोते थे
जो तेरी आहटों से
मोजुदगी से
कैद हो गए ज़रूरतो के मकानों में
मेरी ज़िन्दगी के हसीन पल
तू कहाँ था?
जी मे आता है भगा दू तुझ को
या फिर तुझसे भाग जाऊ कहीं
नहीं है तू हसीन पल जीवन का
तू मेरा वो ही पुराना साथी है
खेलता आया है जो बचपने से साथ मेरे
तेरा नाम दर्द है तू वही तन्हाई है
बस आज इस दुनिया के रंगीन मौसम में
अपनी सूरत बदल कर साथ मेरे
चल रहा है बड़ी कशिश के साथ
शायद खुश है
सुन रहा है मेरी बेचैन आवाज़
के
मेरी ज़िन्दगी के हसीन पल
तू कहाँ था ?
कहाँ?





मौलिक और अप्रकाशित

Views: 565

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 6:55pm

इस प्रयास के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ मनोज अहसासजी. अभिव्यक्ति को कसावट देते रहें. व्याकरण की अशुद्धियों के प्रति सचेत रहना सबसे अधिक आवश्यक है.
शुभेच्छाएँ

Comment by मनोज अहसास on July 3, 2015 at 2:04pm
बहुत आभार
नमन
शुक्रिया


सादर
Comment by kanta roy on July 3, 2015 at 10:03am
हर दिल को इंतजार रहता है किसी का शिद्दत से लेकिन इंतजार हद के बाहर निकल जाती है तो बिलकुल ऐसा ही लगता है कि बाद में उसका आना ,पाना पाने सा नहीं लगता है ।
जज्बातों को बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति दी है आपने आदरणीय मनोज कुमार एहसास जी .... बधाई इस सुंदरतम रचना के लिए
Comment by मनोज अहसास on July 3, 2015 at 7:49am
आप सभी आदरणीय मित्रों का बहुत आभार
शुक्रिया
मेहरबानी
इस तनहा सफ़र में आप का साथ और सदभावना की बेहद ज़रूरत है
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 3, 2015 at 12:18am

आदरणीय मनोज भाई जी, बहुत ही सुन्दर कविता है ..... हार्दिक बधाई !

Comment by maharshi tripathi on July 2, 2015 at 11:27pm

इश्क़ के कतरे मुकद्दर में कभी थे ही नहीं
चंद समझोते थे
जो तेरी आहटों से
मोजुदगी से
कैद हो गए ज़रूरतो के मकानों में,,,,,,,,,,वाह!!,,अत्यंत सुन्दर,,बधाई आ. Manoj kumar Ahsaas जी |

Comment by shree suneel on July 2, 2015 at 9:43pm
भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति... . अच्छी प्रस्तुति आदरणीय मनोज भाई. बधाई हो!
Comment by मनोज अहसास on July 2, 2015 at 9:32pm
बहुत आभार भाई मिश्रा जी
सादर
Comment by मनोज अहसास on July 2, 2015 at 9:30pm
आदरणीया परी जी
हार्दिक आभार
Comment by मनोज अहसास on July 2, 2015 at 9:29pm
आदरणीय राहुल जी हार्दिक आभार
सर हमे तो शिल्प के विषय कुछ पता नहीं है
बस ऎसे ही लिख दिया
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service