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आदरणीय विजयशंकर भाईजी,
दोस्ती हो या दुश्मनी हमें जिन देशों से सदा सतर्क रहना है वो है .. अमेरिका इंग्लैंड पाकिस्तान और चीन । दो करीब हैं दो दूर लेकिन भरोसे के लायक कोई नहीं है। चारो मुँह में राम बगल में छुरी वाले हैं। पाँच देशों को वीटो पावर है भारत छठा देश बन चुका होता लेकिन अमेरिका इंग्लैंड सख्त विरोध करते रहे और आज भी कर रहे हैं।
एक अक्टूबर को मैंने तीन देशों को लेकर ‘ आल्हा छंद ‘ में -- भारत की कुंडली में तीन अमंगल ग्रह लिखा है ।
छंद में जहाँ जहाँ अमेरिका है वहाँ इंग्लैंड को भी जोड़कर देखें, मुझे विश्वास है आपको पढ़ने में आनंद आएगा। मेरे फोटो को क्लिक कर ब्लाग में जायें तो रचना मिल जाएगी।
आपने तो बहुत से प्रश्न उठा दिए हैं , आगे उन पर भी चर्चा करते रहेंगें.... सच कहा आपने चर्चा होती रहेगी।
आपने मेरी टिप्पणी को मान दिया इसके लिए हार्दिक धन्यवाद । आल्हा छंद पर अपनी प्रतिक्रिया कृपया अवश्य दीजिए , उसी जगह ,वहीं पर
सादर
आदरणीय विजयशंकर भाईजी, इस प्रस्तुति पर् हार्दिक बधाई स्वीकर करें।
आपकी सब बाते सही हैं लेकिन .....
भारत का इतिहास लाखों वर्ष पुराना है फिर हम क्यों 2-3 हज़ार वर्ष की बात कर ईशा पूर्व और ईशा बाद जैसै शब्दों का प्रयोग कर अनावश्यक तर्क पर विचार करें। यूरोप अमेरिका या अन्य कोई देश करें तो समझ भी आता है। दूर क्यों जाते हैं लंका का इतिहास भी त्रेता युग से तो हर भारतीय को मानना ही पड़ेगा। अब क्या त्रेता द्वापर के लिए भी ईशा पूर्व जैसे शब्दों का प्रयोग करेंगे। लाखों बरस पुराना स्वाभिमानी लंका आज भी उसी स्वाभिमान के साथ देश के आगे श्री लगाकर श्रीलंका बना हुआ है। अनावश्यक तर्क देकर उसे सीलोन कहने वाले गोरे लुटेरे कौन होते हैं ? भला हो श्री लंका का कि वहाँ आज़ादी के बाद मानसिक रूप से गुलाम नेता सत्ता पर आसीन नहीं हुए वर्ना वह भी हमारी तरह “सीलोन” शब्द को ढोते रहता।
सतयुग त्रेता द्वापर को छोड़ हम कलियुग के प्रारम्भ की ही बात करें -- परीक्षित, जन्मेजय विक्रमादित्य आदि भारत के सम्राट या चक्रवर्ती राजा थे, इंडिया के नहीं। हजारों वर्ष को छोड़ बीच के किसी काल को पकड़ इंडोस इंडस इंडिका सिंधु जैसे शब्दों को लेकर आगे क्यों बढ़े। मुगलों ने हिंदुस्तान कहा अंग्रेजों ने इंडिया कहा। लेकिन आज़ादी के बाद तो हमें एक मात्र भारत होना था। जब इंडिया शब्द अंग्रेजों की देन नहीं है तब तो उसे समझौते में लिखना ही नहीं था। लेकिन अंग्रेज धूर्त थे इसलिए गुलामी के शब्द को हमें अपमानित करने की दृष्टि से जोड़ा गया। बड़ा सवाल ये है कि हमने सख्त विरोध क्यों नहीं किया ? किस मुँह से करते, राजा महाराजा और नेताओं द्वारा उच्च स्तर पर अंग्रेजों की चापलूसी से तो पूरा इतिहास भरा पड़ा है वर्ना हमें तो 90 वर्ष पूर्व आज़ादी मिल जाती या ये कहें कि गुलाम ही न होते। काश राम के देश वाले, रावण के देश श्रीलंका से सीख पाते कि स्वाभिमान और पूरी आज़ादी का क्या मतलब होता है।
अब रही बात अंग्लैस, अंग्रेज, इंग्लिस्तान या बरतानिया जैसे शब्दों की। तो क्या वे हमारी तरह इन शब्दों का प्रयोग अपनी डिक्शनरी , अपनी करेंसी, सरकारी काम काज़ साहित्य, यूएनओ या ओलम्पिक में भाग लेने के समय करते हैं ? हम उन्हें गोरे लुटेरे भी कह सकते हैं ( जो कि तर्क के अनुसार सही है ) लेकिन उन्हें क्या मतलब । वे हमारी तरह केचुयें तो है नहीं कि सर भी न उठा सकें। ये तो हम हैं कि आज़ादी के बाद भी किसी न किसी बहाने गुलामों सा व्यवहार करते ही रहते हैं। और करने वाले प्रायः अभिजात्य वर्ग के वे लोग हैं जो विदेशी डिग्रियाँ लेकर और अंग्रेजी में सपने देखकर बुद्धिजीवी कहलाते है !!
अँग्रेज महा धूर्त थे । जान बूझकर अपमान करने के लिए देवी देवताओं नदी पर्वत हमारे तीर्थ स्थल और शहरों के नाम बिगाड़कर बोलते थे। और इंग्लैंड से पढ़कर आये देश के नेता , उद्योगपति, अफसर आदि इसका विरोध नहीं करते थे। पवित्र नदी गंगा को गैंगी कहने और आजकल योग को योगा कहने के पीछे क्या तर्क और इतिहास है ? कुछ नहीं , बस अपमानित करना ही इनका मुख्य ध्येय है।
शायद इसीलिए अभिजात्य वर्ग के भारतीयों द्वारा किए जा रहे उच्चस्तरीय चापलूसी के कारण ही इन्हें अंग्रेजों ने DOG तक कहा। वहाँ भी विरोध नहीं किये, मुस्कराते रहे। DOG को कहीं उल्टा तो नहीं पढ़ लिए थे ?
कुछ महीने पहले की ही बात है भारत के क्रिकेट खिलाड़ियों को इंग्लैंड में “ डंकी ” कहा गया। पूरे दौरे में खिलाड़ी अधिकारी सभी बेशर्मों की तरह मुस्कराते रहे किसी ने सख्त विरोध नहीं किया, मीडिया बीसीसीआई और सरकार ने भी नहीं। गैरतमंद होते तो उसी दिन भारत लौट आते लेकिन ये काले अँग्रेज पूरी सिरीज़ खेलकर अपनी इज्जत गंवाकर ही लौटे। डाग, डंकी को अँग्रेजी पूजक लोग उपाधि समझकर मुस्कराते हैं !!!!
वो जितने धूर्त थे हम आज भी उतने ही मूर्ख हैं। इंडिया शब्द हटा नहीं पा रहे हैं कि कहीं इंगलैंड नाराज़ न हो जाए। वो तो दूर मेरठ आदि कई शहरों की स्पेलिंग सुधार नहीं पा रहे हैं । इंगलैंड अमेरिका बीच- बीच में कुत्ता गधा या ऐसी ही कोई बात कहकर या हमारे अंदरूनी मामलों में दखल देकर , हमारी जासूसीकर, सुरक्षा के नाम पर एयरपोर्ट में बड़ी हस्तियों को नंगाकर देख लेते हैं कि कहीं इंडिया वालों का स्वाभिमान तो नहीं जग रहा है। मैकाले का कहीं पुनर्जन्म हुआ होगा तो आज अपनी चतुराई और हमारी मानसिक गुलामी और बेवकूफी पर अट्टहास कर रहा होगा।
..... खैर . आगे फिर कभी ............. सादर
बेहद ज्ञानवर्धक एवं भलीभांति शोधित लेख है ,मन के उस भ्रम को दूर करता है ,जिस लेकर इतना हो-हल्ला सुनाई पड़ता है ,लेख के लिए शुक्रिया
सिन्धु से हिन्दु तो पता था, पर इतनी सारी और जानकारी आपने एकदम नई दी है।
हार्दिक आभार।
विजय सर !
इस ज्ञानवर्धक लेख के लिए आपको बधाई i इंडिया शब्द अंग्रेजो की देन न होकर उनसे पूर्व की अवधारणा है यह अधिकाँश लोग नहीं जानते i आपने पूरा इतिहास देकर शब्द की व्युत्पत्ति को अधिकाधिक स्पष्ट किया है i सादर i
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