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आधुनिकता के प्रभाव में टूटते घर मात्र मकान बनकर रह गए हैं, घर को पुनर्परिभाषित करने पर बहुत बधाई आदरणीय डॉ, विजय शंकर जी.
घर वो होता हैए
जहां माँ होती है ए
जहां से माँ आपको कहीं भी भेजे ए
आपका इन्तजार वहीँ करती होती है ।
माँ जननी होती है ए जनम देती है ए
धरती पर लाती है ए माँ घर बनाती है ए
माँ ही घर देती है एजब तक माँ होती है ए
बहुत सही कहा आपने आदरणीय भाई विजय जी घर वही होता है जहां मां का वास हो ममता भरा वातावरण हो ।सच कहा है आपने मां चाहे खुद टूट बिखर जाए पर घर को टूटने बिखरने नहीं देती । घर के बहाने मां की महिमा का बखान करने के लिए हार्दिक बधाई ।
बहुत खूब आदरणीय विजय सर बहुत बहुत बधाई आपको
भाव पूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई ...
रचना के भावों ने इतना मोह लिया कि खुद को रोक नहीं पाया, सादर-
वही घर है जहाँ पे मुन्तजिर अपने हमेशा है
जहाँ भी आप जाते है वहीं से आप जाते है
न घर ये दूर होता है न घर ये पास होता है
जहाँ से दूरियां नापे बड़ा विश्वास होता है
जहाँ होती सभी की माँ वही तो घर बनाती है
जनम देती जमीं पे वो हमे दुनियां सिखाती है
सभी को बाँध रखती है बिखरने से बचाती है
अगर घर छूट जाए तो
अगर घर टूट जाए तो
मगर घर तो अज़ल से आज तक आबाद होता है
कभी दिल में कभी मन में हमेशा याद होता है
घर वो होता है,
जहां माँ होती है ,
जहां से माँ आपको कहीं भी भेजे ,
आपका इन्तजार वहीँ करती होती है ।
माँ जननी होती है , जनम देती है ,
धरती पर लाती है , माँ घर बनाती है ,
माँ ही घर देती है ,जब तक माँ होती है ,
अपने सब बच्चों को ,
बांधे रहती है, जोड़े रहती है,
घर को बिखरने से रोके रहती है |
घर वो होता है ,.........................................सच है ...बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर भावपूर्ण रचना हेतु
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