For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपनी पीठ थपथपाना ---डॉo विजय शंकर

कठिन है
बहुत ही कठिन है
हाथ पीछे कर अपनी ही पीठ थपथपाना,
लेकिन....
कुछ लोग थपथपा लेते हैं,
बार बार थपथपाते हैं ,
लगातार थपथपाते हैं ,
खुद, खुश भी हो लेते हैं,
किन्तु भूल जाते हैं कि...
हाथ का प्रयोजन केवल यही नहीं है,
जिंदगी बीत जाती है,
किन्तु नहीं जान पाते,
और न ही कर पाते हैं
हाथों का सही इस्तेमाल,
बस अपनी पीठ थपथपा
खुश होते जाते हैं |
कभी कभी तो सौगातें आती हैं,
और सामने से निकल जाती है,
किन्तु, उनकें हाथ
अपनी ही पीठ थपथपाते रह जाते हैं |
सौगात पकड़ नहीं पाते,
बस इसी में खुश हो लेते हैं कि ...
लो, अपनी तारीफ़ हो गयी,
जन - सम्पर्क सफल हुआ ।

फायदे और भी हैं ,
शरीर-सौष्ठव बना रहता है,
नियमित व्यायाम होता है,
आदमी अपनी तारीफ़ के लिए
किसी का मोहताज नहीं होता,
यह काम वह खुद कर लेता है.
दूसरे का भरोसा बिलकुल नहीं करता,
जन -जीवन में यह काम नियमित जरूरी है,
सर्वोच्च प्राथमिकता पर किया जाता है ||

आदमी का अस्तित्व,
उसका भविष्य,
बल्कि सबकुछ....
बस इसी पर तो टिका है ॥
( जन -जीवन का प्रयोग public life के लिए किया गया है )

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1140

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 8, 2015 at 11:23pm
आदरणीय सविता मिश्रा जी, रचना पसंद काने के लिए आभार, सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 8, 2015 at 11:20pm
आभार , आदरणीय इंजी o गणेश जी, बागी जी , सहयोग के लिए बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
Comment by savitamishra on February 8, 2015 at 10:15pm

बहुत बढ़िया _/\_सादर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 8, 2015 at 10:02pm

रचना अब अधिक सुगढ़ और सुगठित होकर प्रस्तुत हुई है पुनः बधाई आदरणीय डॉ विजय शंकर जी.

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 8, 2015 at 8:38pm
आदरणीय प्रतिभा जी , आपको रचना पसंद आई, अच्छा लगा, आभार, आपकी प्रभावशाली प्रतक्रिया के लिए धन्यवाद, सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 8, 2015 at 6:02pm
आदरणीय इंजीo गणेश जी बागी जी, आपका बहुत बहुत आभार , रचना के भाव पक्ष को स्वीकारने एवं उसके स्वरुप पक्ष को कुछ और कसने में अपना अमूल्य सहयोग देने के लिए , अब यह पुनः प्रस्तुत है , आपका सहयोग सार्थक एवं सराहनीय है , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 8, 2015 at 12:18am
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी, रचना आपको पसंद आई, आभार, आपकी बधाई हेतु हृदय से धन्यवाद, सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on February 7, 2015 at 10:54pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर,कुछ अलग तरह का शिल्प .....जिंदगी बीत जाती है ,
हाथों का सही इस्तेमाल
कर नहीं पाते हैं , बस
अपनी पीठ , थपथपाते हैं ,
थपथपाते जाते हैं |....... सुन्दर  प्रस्तुति हार्दिक बधाई , सादर ! 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 7, 2015 at 3:21pm

आदरणीय डॉ साहब, कविता में निहित तत्व निश्चित ही बेहद भावप्रधान हैं किन्तु कविता और ठोस रूप में पटल पर आनी चाहिए थी, कविता की रुपरेखा हेतु यह मैटेरिअल हो सकती है किन्तु अब इसे कसने की जरुरत है, सादर.

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 7, 2015 at 12:21pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, रचना आपको पसंद आई , लेखन सार्थक हुआ , आभार, आपकी बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई सर"
2 hours ago
Admin posted discussions
5 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
17 hours ago
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
23 hours ago
AMAN SINHA posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
yesterday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service