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कह गए थे तुम वापस आओगे-- डॉ o उषा चौधरी साहनी

कह कर गए थे तुम
आओगे वापस ,
जरूर आओगे ।
आस में तुम्हारी ,
लगे युग बीत गए जैसे ,
पर न आये तुम ,
न आये तुम्हारे खत ,
ना ही कोई संदेश ,
कहाँ खो गए तुम ,
भटक गए किस देश ?
जिन राहों पर दूर ,
बहुत दूर तक , चले थे ,
खोये , इक दूसरे में हम,
उन्हें, अब ये आँखें तकती हैं,
ढूंढती हैं तुम्हें , शायद कभी
लौटों तुम उन पर ढूंढते हुये
कि तुम्हारा भी
कुछ रह गया वहां पर ,
कुछ खो गया वहां पर ,
और मैं पा लूँ तुम्हें ,
खुद खो कर तुमने क्या खोया
तुम्हारे खो जाने से मैंने
क्या क्या खोया ?
काश ! तू समझ पाये।
वादे थे, जनम - जनम के ,
आस है, प्रतीक्षा है , कब आओगे ,
डर लगता है , क्या नहीं आओगे ,
इस जनम बस ऐसे ही सताओगे ।
यूँ ही बस सताओगे ।
कह कर गए थे तुम
वापस आओगे ,
जरूर आओगे ।

// मौलिक एवं अप्रकाशित //

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Comment by मिथिलेश वामनकर on February 10, 2015 at 12:58am

सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई.

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 9, 2015 at 10:35pm
कुछ कहती है आपकी यह कविता , जो नहीं कहती है, वह लाइनों के बीच अंकित है , अदृश्य है,वह बहुत , बहुत कुछ है। दुःख : है, दर्द है, वेदना है, प्रतीक्षा है, और उम्मीद भी .... , इतना कुछ समेटती एक बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति के लिय बधाई आपको, आदरनीय डॉ o उषा चौधरी साहनी जी, सादर।
Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 9, 2015 at 6:27pm

आदरणीय  जितेंद्र पस्टारिया जी , सादर धन्यवाद। 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 9, 2015 at 4:25pm

सुंदर प्रस्तुति आदरणीया डा. उषा जी. बधाई

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