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शिक्षा का महत्त्व --- डॉo विजय शंकर

"यार , शिक्षा , आई मीन , एजुकेशन , है बड़ी इम्पॉर्टेंट चीज़।"
"अच्छा तुझे भी टीचर्स डे पर ही शिक्षा याद आ रही है "
"हाँ यार , गागर में सागर भर देती है , सागर से मोती निकालना सिखा देती है। "
"ठीक कहते हो यार, पर लगता नहीं यार कि हमारे यहां तो लोग पढ़ कर या तो सागर पार चले जाते हैं ,
या फिर इस पार रेत माफिया जैसे बन कर रह जाते हैं। "
"तुम्हारा मतलब सागर में उतरता कोई नहीं। "

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on September 8, 2015 at 10:08am
आदरणीय सुश्री ज्योत्स्ना कपिल जी , आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by jyotsna Kapil on September 7, 2015 at 12:30pm
आ.विजय शंकर जी,इस गूढ़,गहन लघुकथा हेतु मुबारकबाद कुबूल करें।
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 6, 2015 at 8:01pm
आदरणीय सुश्री कान्ता रॉय जी , आपकी गम्भीर एवं विस्तृत टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार। आपने जो यह लिखा है कि ये बहुत ही चिंतन का विषय है । आपकी लघुकथा का आशय बेहद ही विस्तार लिए चिंतन और मनन के लिए प्रेरित कर रहा है । वह एक बहुत ही सही दृष्टिकोण है , सच तो यही है , परिवार में छोटे- बड़े रिश्तों में पनपते भटकाव से लेकर राष्ट्रीय एवं उससे ऊपर मानवीय पक्षों , सभी को बहुत विचार कर ही जीवन की दिशा निर्धारित करनी चाहिए अन्यथा वही होता है जो हो रहा है , हर निर्णय विवास्पद बन कर रह जाता है और सामान्यतः सब जगह वर्गीय असंतोष ही परिलक्षित होता है। कहीं किसी बात पर लोग एक मत या सहमत नहीं हो पाते हैं, हाँ , कहीं कहीं गलत कामों में यह कह कर , " सब चलता है " आंशिक एकरूपता अवश्य मिल जाती है।
सम्प्रति , आपका आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by kanta roy on September 6, 2015 at 7:28pm
बिलकुल सही कह रहे है आप कि जो पढता है वो सागर पार चला जाता है और जो रह जाते है वो रेत माफिया !
परिस्थिति बेहद विकट है ये । शिक्षा देश की जरूरत है लेकिन अच्छे पैकेज का लोभ अब हर युवा मन में शिक्षा का पर्याय बन गया है । विदेशी कम्पनियों की पैकेज पाॅलिसी और चमक दमक की जिंदगी , भारतीय परिवेश को दिन प्रतिदिन खोखला करती जा रही है । हमारी संस्कार और संस्कृति कहीं इन आयातित माॅल संस्कृति में विलीन हो अपने आस्तित्व को डूबने से रोकने में नाकामयाब हो रही है ।
तकनीकी पढ़ाई ने साहित्य के प्रति हमारे होनहारों का रूझान कम कर दिया है । ये बहुत ही चिंतन का विषय है । आपकी लघुकथा का आशय बेहद ही विस्तार लिए चिंतन और मनन के लिए प्रेरित कर रही है । बधाई आपको आदरणीय डा. विजय शंकर जी ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 5, 2015 at 10:41pm
प्रिय मिथिलेश जी , शिक्षा का महत्त्व , उसकी उपयोगिता , उसकी सार्थकता , उसकी सार्थकता को प्रभावी बना लेने की सूझ- बूझ , सभी कुछ चाहिए शिक्षा के लिए।
हम शायद उसे एक आवश्यक कमोडिटी ही समझ पाए.
आपकी दृष्टि और परख को बहुत बहुत शुभकामनाएं।
सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 8:34pm

बहुत गहन .... बहुत सूक्ष्म दृष्टि .... कमाल की लघुकथा आदरणीय विजय शंकर सर. नमन आपको....

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