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न्यूज़ (लघुकथा) - डॉo विजय शंकर

" अरे यार ये टीo वीo चैनेल वाले भी बस क्या क्या दिखाते रहते हैं , हफ़्तों - महीनों। कभी किसी बाबा को , कभी किसी स्वामिनी को या फिर पारिवारिक रंजिशें।
बस यही देश की न्यूज़ रह गई है ? "
" उनकीं नज़र में यही न्यूज़ है , वो बचपन में पढ़े थे न , कुत्ता आदमी को काटे तो न्यूज़ नहीं होती है , हाँ , आदमी कुत्ते को काटे तो न्यूज़ होती है , किसी बड़े खबरची ने कहा है।"
" पता नहीं , यार , हम तो कभी कुत्ते को काटे नहीं , वो हमारे सामने काट के दिखाता तो पता चलता , उसे भी और हमें भी। "

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on September 6, 2015 at 9:28pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2015 at 8:49pm

आदरनीय विजय भाई , हालिया चल रहे न्यूज चैनलों पर अच्छी लघुकथा कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 6, 2015 at 8:11pm
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , बिलकुल सही कहा आपने , न्यूज़ में आने के लिए ही नहीं , कहीं भी नज़र में आने के लिए कुछ न कुछ ऊट- पटांग करना ही जरूरी होता जा रहा है , सीधे सच्चे मार्ग पर चल कुछ अच्छा करने वालों की तो कोई खबर लेता ही नहीं।लघु-कथा पर आपकी उपस्थिति एवं शुभकामनाओं के लिए आपका बहुत बहुत आभार धन्यवाद , सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2015 at 2:34pm

वो कुत्ते को ही काट रहे हैं, आदरणीय विजय शंकरजी ! 

आपने सामान्य दैनिक व्यवहार से अच्छी लघुकथा निकाली है. हृदय से शुभकामनाएँ .. 

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 6, 2015 at 2:30pm
आदरणीय सुश्री अर्चना त्रिपाठी जी , लघु-कथा की स्वीकृति के लिए आपका आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Archana Tripathi on September 6, 2015 at 12:55am
बहुत ही बेहतरीन लघुकथा ,हार्दिक बधाई डॉ विजय शंकर जी।
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 5, 2015 at 10:33pm
बहुत बहुत धन्यवाद , आदरणीय नीरज कुमार नीर जी , सादर।
Comment by Neeraj Neer on September 4, 2015 at 8:46pm

bआहूत सुंदर सार्थक एवं सामयिक रचना 

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 4, 2015 at 7:38pm
आदरणीय मोहन बेगोवाल जी , रचना को स्वीकार करने के लिए आपका ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर .
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 4, 2015 at 7:37pm
आदरणीय सुश्री कान्ता रॉय जी , रचना को स्वीकार करने और उसकी इतनी विस्तृत व्याख्या के लिए आपका ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर .

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