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टुकड़ा टुकड़ा
लड़ा रहे हैं ,
कह रहे हैं हम
देश बना रहे हैं ॥
वाह आदरणीय Dr. Vijai Shanker jee एक हकीकत को बयां करती इस सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई। सर यही तो इनकी रोटी है … ब्रिटिश राज कहां गया है … आज भी वो कहीं न कहीं किसी मानसिकता में टुकड़ों के राज को ज़िंदा रखे हैं। न जाने कब कोई कुर्सी एक भारत की लिए जियेगी -एक भारत के लिए लड़ेगी ?
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, आपकी रचनाएँ गंभीर चिंतन का परिणाम हुआ करती है. इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई. सादर
स्वयं को खुद ढूंढ
नहीं पा रहे हैं ,
न अपने को समझा
पा रहे हैं ,,,,,,,,,,,,बिलकुल सही है अगर इन दोनों में से एक भी गुण सभी मनुष्यों में हों तो देश के साथ -साथ,व्यक्तित्व भी सुधरेगा ,इस रचना हेतु आपको बधाई |
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी सही कहा आपने.....सभी अपने में मसरूफ हैं....महान सिर्फ कहने भर से नहीं कर्म करने से है....बहुत ही सार्थक कृति आदरणीय !! मेरी जानिब बधाई इस सुंदर पेशकश पर | सादर !!
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