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सादर नमन, सर. आपकी कविता पढ़कर यह स्पष्ट होता है कि किसी की राहों की रुकावटों को कोई नहीं समझता. हाँ! उसकी ऊँची मंजिलों को दुसरे की नजर से ही पहचान पाते है.आपकी कविता एक बहुत बड़ा कटु सत्य है जिसे स्वीकारना ही पड़ता है. इन कमाल की पंक्तियों पर आपको बहुत-बहुत बधाई ,आदरणीय डा.विजय जी
आदरणीय विजय भाई , होता तो सच में यही सब है , कटु है पर सत्य है आपकी बात ॥ बहुत अच्छा विषय लिया है आपने रचना के लिये ! आपको हार्दिक बधाई रचना के लिये ।
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, सोचने पर मजबूर करती भावपूर्ण सुन्दर कविता हुई है, विशेष रूप से-- प्रतिभा को हम तभी जानते हैं\
जब दूसरे कोई विदेशी\पहले उसे पहचानते हैं ,\तब बड़े जोश खरोश से हम\उसे अपना अपना चिल्लाते हैं.\---\पुरोधाओं को सम्मान देने के
/हमारे अपने ख़ास तरीके हैं ,\नेत्र-हीन भिखारी को भीख\नहीं देना होता है तो\सूरदास आगे बढ़ो ,कह कर\हम पुरोधा कवि को सम्मान देते हैं ,\ ----ये कमाल की पंक्तिया है. इस सुन्दर और प्रभावित करती कविता पर हार्दिक बधाई निवेदित है.
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