For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हालात आदमी के - डॉo विजय शंकर

कितना होशियार है आदमी ,
हर समय सचेत रहता है ,
बुद्धि को प्रखर करता रहता है,
हर एक के दिमाग को पढ़ता रहता है ,
बस, जब लुटता है तो दिमाग से नहीं,
दिल से लुटता है,पूरे दिल से लुटता है ......

दिमाग उस समय भी
उसका चौकन्ना रहता है,
खूब याद रखता है, कि कब कहाँ ,
कैसे-कैसे , कितना-कितना लुटे ,
स्मृति में सब रहता है ,
बार बार , दोहराता रहता है,
सुनाता है अपने लुटने की कहानी,
दूसरों की भी सुनता है कहानी………

और फिर तैयार होता है ,
पूरे जोश से,खरोश से,होश से ,
अपनी पूरी सामर्थ्य
और विवेक के साथ ,
फिर लुटने के लिए , अगली बार।
दिमाग फिर भी साथ रहता है,
चौकन्ना भी रहता है,
बस फैसला वो दिल से करता है,
ऐन वक़्त पे दिमाग को छुट्टी दे देता है,
इसी लिए तो बार बार लुटता है.
एक बार दिमाग का काम दिमाग से कर ले ,
काहे को बार बार लुटता है ,
काहे को बार बार लुटता है ॥
नोट - इन पंक्तियों का ताल्लुक इश्क - विश्क से यक़ीनन नहीं है।

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

Views: 648

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 3, 2015 at 1:21am
आदरणीय प्रतिभा जी, आप विचारों से धनी हैं , आपने सही कहा जीवन में मन और मस्तिष्क में अंतर्द्वंद रहता है , और कई कारकों और कई कारणों से रहता है , मैंने यहां सिर्फ वह कारक लिया है जो हमारे सांसारिक व्यवस्था सम्बन्धी जीवन को प्रभा आईटी करता है, बहुत स्पष्ट करूँ तो हम रोज जीवन में कहीं न कहीं ठगे जाते हैं पर वहां हम भावुक रह कर चुप रह जाते हैं , अभी हम में से बहुत लोग अपने मत का प्रयोग भावनाओं के आधार पर ही करते हैं , और परिणाम सामने है.
आपकी उत्साहपूर्ण टिप्पणी के लिए आपका आभार , सद्भावनाओं के लिए धन्यवाद, सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 2, 2015 at 8:08pm
प्रिय जीतेन्द्र जी, रचना की स्वीकृति के लिए आपका आभार , बधाई के लिए धन्यवाद, सादर।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 7:21pm

एक इंसान का हालातों से सामना और फिर मन और मस्तिष्क से लिए गए फैसलों में नफा-नुक्सान को बहुत ही बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया आपने , आदरणीय डा. विजय जी. रचना पर बहुत-बहुत बधाई

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 2, 2015 at 5:41pm
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी, आभार, बधाई हेतु ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद, सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 12:50pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, सुन्दर रचना है , हार्दिक बधाई आपको सर ! सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 2, 2015 at 11:51am
आदरणीय इंजीo गणेश जी बागी जी, आपके द्वारा इंगित संशोधन कर दिया है, आपका बहुत बहुत आभार, धन्यवाद, सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 2, 2015 at 11:00am
आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी, रचना को स्वीकार करने के लिए बहुत बहुत आभार , आपकी बधाई एवं सद्भावनाओं के किये ह्रदय से धन्यवाद। सादर।
Comment by khursheed khairadi on March 2, 2015 at 9:10am

बस, जब लुटता है तो दिमांग से नहीं,
दिल से लुटता है,पूरे दिल से लुटता है ......

दिमांग उस समय भी
उसका चौकन्ना रहता है,
खूब याद रखता है, कि कब कहाँ ,
कैसे-कैसे , कितना-कितना लुटे ,

आदरणीय विजयशंकर सर ,सुन्दर रचना हुई है ,हार्दिक बधाई |सादर अभिनन्दन |

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 2, 2015 at 6:13am
आदरणीय इंजी o गणेश जी बागी जी , रचना को स्वीकार करने के लिए आपका आभार एवं बधाई के लिए ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
अंग की बिंदी हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद , हटा दूंगा। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 2, 2015 at 6:10am
आदरणीय शिज्जु शकूर जी , आपका आभार एवं बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
3 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
5 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
5 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
5 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
5 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service