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शेरों की दुनियाँ---डा० विजय शंकर

शेरों की दुनियाँ अजीब ,
जमाना अजीब होता है,
हर शेर अज़ब होता है,
हर शेर गज़ब होता है,
शेर सवाल, शेर जवाब होता है
शेर का जवाब भी शेर होता है
शेर पर शेर , सवा सेर होता है |

हमको भी शौक चर्राया,
हम भी आ गए शेरों के बीच ,
अपने चूहे बिल्ली लेकर ,
उन्होंने वो हंगमा बरपाया
कि शेर शेर घबड़ाया , बोला ,
अरे ,ये कौन शेर के जंगल में चला आया |

शेरों की अपनी एक तहजीब होती है ,
एक अदब , एक तमीज होती है ,
क़यामत होती है , एक अलग तरह की ,
बला की नरमी के साथ , और
भरपूर नफ़ासत के साथ होती है,
यूँ ही नहीं कूद पड़ता कोई शेर बन कर ,
यूँ ही शोर मचाओगे तो कहाँ से दाद पाओगे ,
उसके लिए तो मियाँ अदा चाहिए ,
शेर शेर के लिए , सदा चाहिए ,
यूँ ही चिल्ल पों मचाओगे ,
तो शेर क्या , गीदड़ ही रह जाओगे ,
शायरी तो दर्द है, इश्क है, हुस्न है,
हुस्न का जिक्र है , हुस्न की फ़िक्र है,
मेहबूबा की बात है, मेहबूबा से बात है,
मेहबूब की आन है , मेहबूब का बयान है.
आजकी शायरी तो बस तकलीफ़ें ,
बस तकलीफ़ें ही बयाँ करती रहती है,
यूँ तो इश्क,मेहबूब,मेहबूबा भी बस तकलीफें ही देते हैं,
आज तो तकलीफें ही इश्क और माशूक बने बैठे हैं |

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

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Comment by Dr. Vijai Shanker on February 27, 2015 at 6:50am
आदरणीय राजेश कुमारी जी, आपने रचना को पसंद कर उसका मान बढ़ाया है, आभार, बधाई हेतु धन्यवाद। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 27, 2015 at 2:56am
आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी , आपका जवाब भी लाजवाब है, बहुत बहुत शुक्रिया , सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 26, 2015 at 8:39pm

हमको भी शौक चर्राया,
हम भी आ गए शेरों के बीच ,
अपने चूहे बिल्ली लेकर ,
उन्होंने वो हंगमा बरपाया
कि शेर शेर घबड़ाया , बोला ,
अरे ,ये कौन शेर के जंगल में चला आया |---बातों बातों में बात हो गई जनाब .....

आदरणीय खुर्शीद जी की बात से सहमत हूँ  ,काफ़ी साहसी और जिगर वाली रचना है जिसके लिए बधाई तो बनती ही है 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on February 26, 2015 at 7:24pm

वाह वाह कहने के अलावा और कुछ नहीं कह सकता ... गजब की अदा है कहे तो ये सदा है ...सादर!

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 26, 2015 at 10:10am
आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी, रचना आपको साहसी और जिगर वाली लगी , जानकार बहुत अच्छा लगा, आपकी प्रशस्ति से उत्साह बढ़ा, आभार, आपकी सद्भावनाओं के लिए ह्रदय से धन्यवाद, सादर।
Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 9:50am

हमको भी शौक चर्राया,
हम भी आ गए शेरों के बीच ,
अपने चूहे बिल्ली लेकर ,
उन्होंने वो हंगमा बरपाया
कि शेर शेर घबड़ाया , बोला ,
अरे ,ये कौन शेर के जंगल में चला आया |

आदरणीय विजयशंकर सर ,काफ़ी साहसी और जिगर वाली रचना है |सादर अभिनन्दन |

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 26, 2015 at 12:20am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपको पसंद आया , अत: अच्छा होगा , पुष्टि के लिए बहुत आभार , बधाई हेतु भी अस्प्को धन्यवाद, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 25, 2015 at 10:10pm

आदरणीय विजय भाई , आज एक नये तेवर में आपकी रचना पढ़ी , ये रंग भी खूब है  । बधाई आपको बहुत बहुत ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 25, 2015 at 9:45pm
प्रिय जीतेन्द्र जी , रचना आपको पसंद आई ,प्रशंसा के लिए आपका आभार , आपकी समस्त सद्भावनाओं , बधाई के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 25, 2015 at 9:41pm
प्रिय मिथिलेश जी , रचना आपको पसंद आई ,आभार ,कभी कभी गंभीर बातें भी थोड़े हास्य के साथ कोमल हो जाती हैं , आपकी तमाम सद्भावनाओं के लिए आपका धन्यवाद , सादर।

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