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आदरणीय विजय निकोर जी रचना आपको पसंद आई , अच्छा लगा। बधाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना की स्वीकृति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
आदरणीय खुर्शीद हैदर जी रचना को स्वीकार करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
आदरणीय डॉo प्राची सिंह जी विषय की संवेदनशीलता की गहराई तक जाने के लिए बहुत बहुत आभार। आपका सुझाव भी ध्यान रखने योग्य है।मैं अवश्य ध्यान रखूंगा। आपकी बधाई एवं शुभकामनाओं लिए ह्रदय धन्यवाद।
आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी रचना की स्वीकृति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
सुन्दर, यथार्थपरक, सराहनीय रचना के लिए बधाई, आ० विजय जी
जब कि गुनाह खुद बेइंतहा शर्मिन्दा है ....
कि लोगो में उसके लिए कोई खौफ नहीं है
आदरणीय विजयशंकर जी ,सुन्दर प्रस्तुति है |सादर अभिनन्दन
आदरणीय डॉ० विजय शंकर जी
गुनाहों के व्याप्त स्वरूप को देख समाज में आ चुकी सहज संवेदनहीन विवश मूक आरोपित स्वीकार्यता को आपने प्रस्तुत किया है... कथ्य बहुत संवेदनशील है ...इसके लिए आपको हार्दिक बधाई
लेकिन भावों को प्रस्तुति के लिए अभी और सुगढ़ किये जाने की आवश्यकता लगी... अभिव्यक्ति कुछ और समय की मांग करती है
हार्दिक शुभकामनाओं सहित
सादर.
आ. विजय भाई , रोज रोज़ बढते गुनाहों का दर्द आपकी कविता मे महसूस हुआ , कविता के लिये बधाई ।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय//हार्दिक बधाई आपको
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