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किसको बतायें -एक कोशिश - डॉo विजय शंकर

सम्हाल सके न इश्क किसको बतायें
हम काबिल ही न थे किसको बतायें |

जगहंसाई अपनी क्योंकर करायें
तुम बेवफा निकले किसको बतायें |

तुम खेल गये खेल था तुम्हारे लिये
हम समझे क्या उसे किसको बतायें |

लगा दुनियाँ जीत ली संग तुम्हारे
पर हम हर पल हारे किसको बतायेँ |

इक काँटा चुभे उसकी फितरत है
फूल भी चुभता है किसको बतायें

वजह भी बेवफाई की होती है
वजह वो खुद हम थे किसको बतायें |

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 14, 2015 at 7:00pm

बहुत खुसुरत लिखा, सर. आपकी रचनाओं में यह अंदाज भी तारीफ़ ए काबिल हुआ है. दिली बधाई कुबूल कीजियेगा आदरणीय डा. विजय जी.

Comment by maharshi tripathi on March 14, 2015 at 4:51pm

इक काँटा चुभे उसकी फितरत है
फूल भी चुभता है किसको बतायें

वजह भी बेवफाई की होती है
वजह वो खुद हम थे किसको बतायें |,,वाह!! इस खूबसूरत गजल पर दाद कुबुलें आ. Dr. Vijai Shanker  जी |

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 14, 2015 at 4:29pm

इक काँटा चुभे उसकी फितरत है
फूल भी चुभता है किसको बतायें

वजह भी बेवफाई की होती है
वजह वो खुद हम थे किसको बतायें |

सुन्दर रचना पर बधाई आदरणीय!!

Comment by Hari Prakash Dubey on March 14, 2015 at 4:24pm

आदरणीय डॉक्टर विजय शंकर सर , इस सुन्दर ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई , ये दो शे'र बेहतरीन लग  रहे हैं .... 

लगा दुनियाँ जीत ली संग तुम्हारे
पर हम हर पल हारे किसको बतायेँ |....वाह 
इक काँटा चुभे उसकी फितरत है
फूल भी चुभता है किसको बतायें...शानदार ...... सादर !

Comment by Shyam Mathpal on March 14, 2015 at 12:21pm

Woh .woha .. Aadarniya Dr.Vijai Shanker ji Anand aa gaya. Ye khi dilon ki kahani hai. Bhaut-2 badhi.. Surkirya. Ese hi likhte rahiye.

Comment by Shyam Narain Verma on March 14, 2015 at 11:44am
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 

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