For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुनाह होना आम हो गया - डॉo विजय शंकर

वो गुनाह को पनाह देते रहे
वो पनपता रहा , वो मौज करते रहे .
गुनाह होना रोज का काम हो गया
ऐसा काम , कि बस आम हो गया ,
जब चाहे , जहां हो जाये ,
कौन जानें , कब , कहाँ हो जाये .
हालात ये हैं कि अब लोग चौंकते नहीं ,
कहीं , कुछ भी , हो जाए बोलते नहीं ,
कहीं , किसी से , कुछ पूछतें नहीं
उस तरफ , उफ्फ … देखते नहीं ,
ये हालात हैं , जो शर्मिन्दा कभी हुए नहीं ,
जब कि गुनाह खुद बेइंतहा शर्मिन्दा है ....
कि लोगो में उसके लिए कोई खौफ नहीं है
इस कदर अपनी इतनी बेइज्जती देख कर .

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 731

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 10, 2014 at 5:19pm

आदरणीय विजय निकोर जी रचना आपको पसंद आई , अच्छा लगा।  बधाई  के लिए बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।   

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 10, 2014 at 5:16pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना की स्वीकृति  के लिए बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।   

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 10, 2014 at 5:13pm

आदरणीय खुर्शीद हैदर जी रचना को स्वीकार करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।   

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 10, 2014 at 5:09pm

आदरणीय डॉo प्राची सिंह जी विषय की संवेदनशीलता की गहराई तक जाने के लिए बहुत बहुत आभार।  आपका सुझाव भी ध्यान रखने योग्य है।मैं अवश्य ध्यान रखूंगा। आपकी बधाई एवं  शुभकामनाओं  लिए ह्रदय  धन्यवाद।  

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 10, 2014 at 4:49pm

आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी रचना की स्वीकृति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।  

Comment by vijay nikore on November 10, 2014 at 4:16pm

सुन्दर, यथार्थपरक, सराहनीय रचना के लिए बधाई, आ० विजय जी

Comment by khursheed khairadi on November 10, 2014 at 2:31pm

जब कि गुनाह खुद बेइंतहा शर्मिन्दा है ....
कि लोगो में उसके लिए कोई खौफ नहीं है

आदरणीय विजयशंकर जी ,सुन्दर प्रस्तुति है |सादर अभिनन्दन 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 10, 2014 at 1:55pm

आदरणीय डॉ० विजय शंकर जी 

गुनाहों के व्याप्त स्वरूप को देख समाज में आ चुकी सहज संवेदनहीन विवश मूक आरोपित स्वीकार्यता को आपने प्रस्तुत किया है... कथ्य बहुत संवेदनशील है ...इसके लिए आपको हार्दिक बधाई 

लेकिन भावों को  प्रस्तुति के लिए अभी और सुगढ़ किये जाने की आवश्यकता लगी... अभिव्यक्ति कुछ और समय की मांग करती है 

हार्दिक शुभकामनाओं सहित 

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 10, 2014 at 8:44am

आ. विजय भाई , रोज रोज़ बढते गुनाहों का दर्द आपकी कविता मे महसूस हुआ , कविता के लिये बधाई ।

Comment by ram shiromani pathak on November 9, 2014 at 2:32pm

 बहुत  ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय//हार्दिक बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"सुलगता रहा इक शरर धीरे धीरे जलाता रहा वो ये घर धीरे धीरे मचाया हवाओं ने कुहराम ऐसा गिरा टूट कर हर…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"रदीफ़ क़ाफ़िया में तो ऐसा कोई बंधन नहीं है इसलिये आपका प्रश्न स्पष्ट नहीं है। "
3 hours ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"नमस्कारक्या तरही मिसरे में लिंग अनुसार बदलाव करसकते हैंक्यूंकि उसे मैं अपने अनुसार प्रयोग…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"स्वागत है।"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"यह तरही के लिए है या पृथक से?"
4 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"स्वागतम"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )

११२१२     ११२१२       ११२१२     ११२१२  मुझे दूसरी का पता नहीं ***********************तुझे है पता तो…See More
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाई , वाह ! बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है , दिली बधाई स्वीकार करें "
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय  निलेश भाई  हमेशा की तरह अच्छी ग़ज़ल हुई है,  हार्दिक  बधाई वीकार…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण  भाई , अच्छी ग़ज़ल कही , बड़ी कठिन रदीफ़ चुनी आपने , हार्दिक  बधाई आपको "
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें मक्ता शायद अपनी बात नहीं कह पा रहा…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति हमेशा प्रेरणा दाई  होती है , ग़ज़ल के कुछ शेर आपको अच्छे…"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service