For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऊंचे चमकदार आदर्श -- डॉo विजय शंकर

ऊंचे आदर्श ,
बहुत ऊंचे , पहुँच से ऊपर ,
झाड़फानूस की तरफ ,
रौशन भी होते हैं , चमक के साथ ,
बिजली आती रहे तब ,
और हैं भी केवल उन घरों में
जो इतने बड़े हैं कि
झाड़फानूस लगवा सके।
पर वे भी बस उसकी चमक से
उपकृत , चमत्कृत होते रहते हैं ,
अधिकांशतः किसी के आने पर
उसे रौशन करते हैं , दिखाने के लिए।
सामान्यतः तो आदमी मामूली चप्पलों में ही
चलता है , उसका जीवन तो उन्हीं में बीतता हैं ।
उनमें से बहुतों ने तो झाड़फानूस देखे भी नहीं हैं ,
उसके आदर्श तो वही हैं जो उसे चलायमान बनाये रखें ।
सजे हुए आदर्श , कितने भी चमकदार क्यों न हों
किस काम के , किसी के भी।

मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर

Views: 480

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 16, 2015 at 7:11pm
आदरणीय सौरभ पांडे जी , रचना को आपकी स्वीकृति हेतु आपका आभार एवं शुभकामनाओं हेतु ह्रदय से धन्यवाद। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on July 16, 2015 at 7:08pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , कविता पर आपकी उच्च प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभार, रचना की स्वीकृति हेतु आपको धन्यवाद। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on July 16, 2015 at 7:06pm
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , कविता पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभार, रचना की स्वीकृति हेतु आपको धन्यवाद। मुद्रण की ध्यानाकर्षण के लिए भी आभार। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on July 16, 2015 at 7:03pm
आदरणीय सुश्री काँता रॉय जी , कविता के आपके सारगर्भित विश्लेषण के लिए ह्रदय से आभार, रचना की स्वीकृति हेतु आपको धन्यवाद। सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2015 at 11:54pm

इस अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनाएँ, आदरणीय विजय शंकरजी.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 25, 2015 at 12:16pm

आदरणीय विजय भाई , आपकी रचना ने दीवार फिल्म का प्रसिद्ध डायलाग याद दिला दिया --- '' उफ्फ ! ये तुम्हारे आदर्श , इनको गूँध के दो वक़्त की रोटी भी नही बनाई जा सकती , रवि ''   लाजवाब रचना के लिये हार्दिक बधाई स्वीकार करें ॥

Comment by Hari Prakash Dubey on June 24, 2015 at 5:41pm

 आदरणीय  डॉo विजय शंकर सर , बहुत सुन्दर , सोचने पर मजबूर  कर देती है  आपकी  यह  रचना ऊंचे आदर्श/ बड़े घर / आम आदमी / मामूली  चप्पल ....शानदार   , बस तीसरी पंक्ति  में झाड़फानूस की तरफ/ की जगह  क्या तरह होना  चाहिये ? सादर   

Comment by kanta roy on June 24, 2015 at 11:03am
बहुत ही उम्दा कहा है आपने " ऊँचे चमकदार आदर्श " को । झाडफानूसों में टंगे हुए कीर्तीमान कायम करने के लिए महज़ बनाये है लोगों नें अपने अपने चमकीले आदर्श .... उन आदर्शों का क्या मोल जो सिर्फ किताबों की पंक्तियों में मोती से सजे रहे ... सच्चा आदर्श कायम करने में सुख का त्याग करना पडता है ... सहना पडता है कई बार फुटपाथी बनने का इल्ज़ाम लेकिन आपकी यह बात ही सौ बातों की एक है कि ......"सजे हुए आदर्श , कितने भी चमकदार क्यों न हों
किस काम के , किसी के भी ।" .... नमन आपके इस अभिव्यक्ति को

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  ______ जगमग दीपों वाला उत्सव,उत्साहित बाजार। जेब सोच में पड़ी हुई है,कैसे पाऊँ…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"चार पदों का छंद अनोखा, और चरण हैं आठ  चौपाई औ’ दोहा की है, मिली जुली यह ठाठ  विषम…"
9 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद * बम बन्दूकें और तमंचे, बिना छिड़े ही वार। आए  लेने  नन्हे-मुन्ने,…"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रात: वंदन,  आदरणीय  !"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद : रौनक  लौट बाजार आयी, जी   एस   टी  भरमार । वस्तुएं …"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम..."
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Oct 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service