सपना ---
लंगड़े की बैशाखी,बच्चे का खिलौना,
रेल आई -रेल आई,लेकर दौड़ा छोना |
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सुख की परिभाषा उस बच्चे से पूछो,
ना खाने को रोटी,ना सोने का बिछोना|
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खेलता है फिर भी,रुखी रोटी खा,
मांगता नहीं वह कार या खिलौना|
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देखा है मैंने उसको सपने सजाते,
खुले गगन तले चाहता है वह सोना|
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धरती से अम्बर उसकी सीमाएं हैं,
देखता है सबको रोटी का वह सपना|
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डॉ अ कीर्तिवर्धन
9911323732
Comment
एक अच्छी रचना के लिये बधाई
aap sab mitron ke prati kragyata gyapit karata hun,itna utsah badhane ke liye.
सुख की परिभाषा उस बच्चे से पूछो,
ना खाने को रोटी,ना सोने का बिछोना|..
मन को छूने वाली रचना .
बधाई ।
बच्चे की मनोदशा बताते हुए व्यापी विडंबनाओं को रेखांकित करनी की बेहतर कोशिश के लिये कीर्तिवर्द्धनजी को सादर बधाई प्रेषित करता हूँ.
मन को छूने वाली ह्रदय स्पर्शी रचना के लिये बहुत बहुत बधाई ।
बहुत हृदय स्पर्शी रचना..बधाई !
''सुख की परिभाषा उस बच्चे से पूछो,
ना खाने को रोटी,ना सोने का बिछोना|''
बहुत सुंदर एवं मार्मिक अभिव्यक्ति, बधाई स्वीकार करें...
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