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वीणावादिनी सरस्वती,
माँ शारदे भारती वर दे !

अँधकार की गर्द बढी है
सूरज की रौशनी घटी है
रतौँधी से ग्रस्त है मानव,
कवि की दृष्टि पड़ी धुँधली है

शिव-नेत्र -कवि हृदय जगा दे !
कि माँ शारदे रात जगा दे
जग से अँधकार मिटा दे

वर दे माँ शारदे वर दे !

तमसो मा ज्योतिर्गमय मंत्र
समस्त विश्व प्रसारित कर दे !

द्रोही हैं जो मानवता के
जन-धन की आवश्यकता के
चुन-चन कर संहार करो माँ
वंचित जन-मन उजास भर दे !

ब्रह्मा - पुत्री हंसवाहिनी माँ
प्रत्युत्पन्नमति प्रगल्भा तू
विद्युत -रेख जग सारे भर दे !

दीपावली प्रकाश घटा है
अमावस का देवि, आकार बढ़ा है
ठेंगा दिखा रहे पाक- चीन
सीम| पर अतिक्रमण बढा है

धर काली अवतार भयावह
देवि जवाव चीन को कर दे !

वर दे वीणा- वादिनी वर दे !

हक़-हकूक जन सम वितरित हो
व्यवस्था बूढों - बच्चों हित हो
बालक भविष्य, वृद्ध है रक्षक,
संस्कृति सनातन प्रवाहित हो 

वर दे वीणावादिनी वर दे !
शुभ्र ज्योत्सना सकल धरा,
माँ भारतभूमि प्रवाहित कर दे!

वर दे वीणा- वादिनी वर दे !

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Chetan Prakash on November 3, 2020 at 10:18pm

बंधु बृज राज बृज साहब, आप सरस्वती वंदना तक पहुँचे, आपका अशेष आभार

Comment by Chetan Prakash on November 3, 2020 at 10:01pm

बँधु, बृजेश कुमार बृज, आप सरस्वती वंदना तक पहुँचे और रचना को आपने सराहा, मैं आपका हृदय तल से आभारी हूँ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 3, 2020 at 8:28pm

वाह वाह बहुत सुन्दर रचना...जय हो

कृपया ध्यान दे...

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