सामयिक षटपदियाँ:
संजीव 'सलिल'
*
मानव के आचार का स्वामी मात्र विचार.
सद्विचार से पाइए, सुख-संतोष अपार..
सुख-संतोष अपार, रहे दुःख दूर आपसे.
जीवन होगा मुक्त, मोहमय महाताप से..
कहे 'सलिल' कुविचार, नाश करते दानव के.
भाग्य जागते निर्बल होकर भी मानव के..
***
हार न सकती मनीषा, पशुपति दें आशीष.
अपराजेय जिजीविषा, सदा साथ हों ईश..
सदा साथ हों ईश, कैंसर बाजी हारे.
आया है युवराज जीत, फिर ध्वज फहरा रे.
दुआ 'सलिल' की, मौत इस तरह मार न सकती.
भारत माता साथ, मनीषा हार न सकती..
*
शीश काटना उचित जब, रहे सामने युद्ध.
शीश झुकाना उचित यदि, मिलें सामने बुद्ध..
शुद्ध ह्रदय से कीजिए, मन में तनिक विचार.
शांति काल में शीश, क्यों काटें- अत्याचार..
दंड न अत्याचार का, दें- हों कुपित शशीश.
बदले में ले लीजिए, दुश्मन के सौ शीश..
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Comment
राजेश जी, राम शिरोमणि जी, लक्ष्मण जी, प्रदीप जी
आपका आभार त्वरित प्रतिक्रिया हेतु.
कहे 'सलिल' कुविचार, नाश करते दानव के.
भाग्य जागते निर्बल होकर भी मानव के..
कुविचार के कारण दानवों का नाश होता है तथा मानवों का भाग्य जागता है. निहितार्थ चूंकि दानव कुविचारों से ग्रस्त तथा मानव कुविचारों से मुक्त रहते हैं.
सत्य ही मैं प्रतिदिन कुछ न कुछ सीखने के र्पयास करता हूँ. आभार आप सबका कि आप इसे न केवल बर्धस्त करते हैं अपितु सराहना कर उत्साह भी बढ़ाते हैं.
रोज नया नया सीखने को मिलता है
आभार
आदरणीय सलिल जी
सादर
समाचार सोपान से प्रेरित विचारों को प्रस्तुत करने पर हार्दिक बधाई
तीनो ही षट पदियाँ एक से बढ़कर एक,
संजीव सलिल लिखे सदविचार सब नेक ।
वाह क्या बात है उत्तम अति उत्तम !!
शीश काटना उचित जब, रहे सामने युद्ध.
शीश झुकाना उचित यदि, मिलें सामने बुद्ध.. बहुत ही सुंदर संदेश देती रचना
कहे 'सलिल' कुविचार, नाश करते दानव के.
भाग्य जागते निर्बल होकर भी मानव के.. सादर नमन आचार्यजी, मैं इन पंक्तियों का अर्थ नहीं निकाल पा रहा हूं, कृपया मार्गदर्शन करें
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