नवीन लगे दिन रात नवीन सुहावत है हर बात नवीन/
नवीन खिले सब फूल-बहार,बयार चली भर शीत नवीन/
नवीन मिला जब साथ भई हथ हाथ लिए कुछ बात नवीन/
नवीन प्रसंग नवीन उमंग मिला मन को मन मीत नवीन//
करो न बचाव मिले उसको भरपूर सजा अरु दंड कठोर/
बने जहं भी नर कोय पिशाच, चुभे उसको गल फांस कि डोर/
जहां नित शोषित नार रहे सरकार में शामिल हों सब चोर/
वहाँ न सुरक्षित नार रहे घरबार न द्वार न मित्र न मोर/
Comment
आदरणीय प्रदीप जी सादर, आपकी दोहा छंद पर रुचि ने मन मोह लिया है.बस ज़रा सा दोहा विधान के अनुसार १३ - ११ मात्रा को भी निभाइए और आइये छंद सीखने कि कक्षा में मेरे साथ आप भी होंगे तो कक्षा कि रौनक और भी बढ़ जायेगी. स्वागत.
देख नवीनता आपकी प्रदीप भये नवीन २१ १२१२ २१२, १२१ १२ १२१
नारी असुरक्षित वहाँ रहे जहाँ कमीन २२ ११२११ १२, १२ १२ १२१
आदरणीय भ्रमर जी सादर सवैया और सक्रीय सदस्य पर आपकी बधाई पाकर प्रसन्नता हुई. आपका बहुत बहुत आभार.जय श्री राधे.
देख नवीनता आपकी प्रदीप भये नवीन
नारी असुरक्षित वहाँ रहे जहाँ कमीन
अब देखिये सर जी,
सादर
प्रिय अशोक भाई माह का सक्रिय सदस्य चुने जाने पर आप के श्रम और लगन को बधाई जय श्री राधे
प्रिय अशोक भाई सुन्दर जज्बात और सुन्दर सन्देश देती सरकार और समाज को जगाती हुयी ये रचना .सवैया सुन्दर रही ...बधाई
आदरेया प्राची जी सादर, आपकी शिकायत को सुधार कर पुनः सवैया प्रस्तुत किया है यदि आप इसे पढ़ें तो अवश्य कोई त्रुटी हो तो अवगत कराएं.आभार.
सवैया प्रयास पर आपसे सराहना पाकर संबल मिला. आपका हार्दिक आभार आदरेया राजेश कुमारी जी सादर.
आदरणीय अशोक रक्ताले जी हर सवैया में आपका प्रयास बहुत प्रेरणास्पद है ,बहुत सुन्दर सामयिक सवैये लिखे हैं दूसरा तो बहुत ही सार्थक है बहुत पसंद आया ,हार्दिक बधाई आपको
आदरणीय लड़ीवाला जी एवं आदरेया महिमाश्री जी आपसे छंद के प्रस्तुत भाव पर सराहना पा कर प्रसन्नता हुई. आप दोनों का ही बहुत बहुत आभार.
आदरेया प्राची जी सादर, बिलकुल सही है भाव निर्वहन दोनों ही विषयों पर संतुलित ही रख पाया हूँ. दोनों ही सवैया में जो त्रुटियाँ आपने निर्धारित की है उसमे अवश्य ही सुधार करूँगा. सादर.
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