यू टू (you too ) - लघुकथा -
मेरी छोटी बहिन कुसुम आठवीँ कक्षा में थी। उम्र चौदह साल होगी।
उस दिन वह छत पर कागज के जहाज बना कर उड़ा रही थी। उसी वक्त पिताजी का घर आना हुआ और कुसुम का उड़ाया हुआ जहाज पिताजी से टकराया। पिताजी ने उस कागज के जहाज को उठा लिया। खोल कर देखा तो वह एक प्रेम पत्र था।लेकिन उस पर किसी का नाम नहीं था, ना पाने वाले का ना भेजने वाले का। "प्रिय" से शुरू किया था और "तुम्हारी" से अंत किया था।
पिताजी ने छत पर कुसुम को देखा तो उनका गुस्सा सातवें आसमान परपहुँच गया। उन्होंने पूरा घर सर पर उठा लिया। कुसुम के साथ माँ को भी चार बात सुना दीँ।
"और पढ़ाओ बेटियों को। बड़ी की देखा देखी छोटी भी गुल खिलाने लगी।"
माँ चुपचाप सब सुनती रही। कुसुम से बार बार पूछा गया कि यह पत्र किसको लिखा था, मगर वह एक शब्द नहीं बोली। मैं एक कोने में सिमटी सब कुछ सुन रही थी। मेरा कुछ कहने या हस्तक्षेप करने का प्रश्न ही नहीं था क्योंकि पूरे परिवार को मेरी प्रेम कहानी के बारे में पहले ही पता चल चुका था। मुझे तो यक़ीन ही नहीं हो रहा था कि कुसुम जैसी सीधी सादी और पढ़ाकू लड़की भी ऐसा कदम उठा सकती है।
पिताजी सब को भला बुरा सुनाकर, माँ को ढेर सारी हिदायत देकर, वापस दुकान चले गये।
मैं बड़ी बहिन का फ़र्ज़ निभाने के बहाने कुसुम को समझाने लगी," कुसुम तू भी, तू तो अभी बहुत छोटी है। ना समझ है। पिताजी तुझे डॉक्टर बनाना चाहते हैं| तुझे यह सब नहीं करना चाहिये।"
"जीजी, मुझे छोड़। पहले तू अपने आप को देख।" और गुस्से में कुसुम वह कागज का जहाज, जो पिताजी वहीं पटक गये थे, मेरे हाथ में थमा कर बड़बड़ाती हुई चली गयी।
मेरी उत्सुकता जागी कि देखूँ, आखिर कुसुम ने लिखा क्या है।
मेरे तो होश ही उड़ गये क्योंकि यह खत तो मेरे द्वारा ही लिखा हुआ था।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय मिर्ज़ा हफ़ीज़ बेग जी।
भाई तेजवीर सिंह जी, वाकई कहाँई कहने के बेहतरीन तरीका। अच्छा शिल्प; सफल कार्य। बहुत बहुत बधाईयाँ।
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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