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पहचाना सा एक चेहरा

वर्षों हुए

एक बार देखे उसको

तब वो पुरे श्रृंगार में होती थी

बात बहुत

करती थी अपनी गहरी आँखों से

शब्द कहने से उसे उलझने तमाम होती थी

 

इमली चटनी

आम की क्यारी

चटपट खाना बहुत पसंद था

सैर सपाटे

चकमक कपडे रंगों का खेल

गाना बजाना हरदम था

 

खेलना कूदना

पढ़ना लिखना सपने सजाना

सब उसके फेहरिस्त का हिस्सा थे

सावन, झूले

नहरों में नहाना, पसंद का खाना

कई तरह के किस्से थे

 

आज दिखी थी

नुक्कड़ के बाजार में अकेली

सादा सा लिवास ओढे हुए

चाल धीमी थी

कंधे पर कटे बाल झूलते

चेहरा बिल्कुल ही उदास था

 

काले पड़े थे

होंठ उनमे लाली न थी

कई दिनों से जैसे वो नहाई न थी

मैं ढूंढ रह था

उसकी गहरी आँखों को

वो सुख चुकी थी उसमे अब नमी ना थी

 

मैंने लोगों से पूछा

ये यहां कब से खड़ी है

वो बोले जबसे उसके पति का शव उठाया गया

लगा एक बार

बुलाऊँ लेकर मैं नाम उसका

मुझे नाम याद था पर मुझसे बुलाया ना गया

"मौलिक व अप्रकाशित"

अमन सिन्हा 

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Comment by नाथ सोनांचली on May 20, 2020 at 3:56pm

आद0 अमन सिंह जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावपुरक रचना लिखी है आपने। बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by AMAN SINHA on May 16, 2020 at 1:26pm

श्री गणवीर साहब एवं मुसाफिर साहब, 

टहे दिल से आपका आभार। इसी तरह मेरा हौंसला बढ़ाते रहेंगे तो मैं और भी लिखता रहूँगा। 

Comment by सालिक गणवीर on May 16, 2020 at 10:42am
भाई अमन सिन्हा जी
एक बेहद ह्दयस्पर्शी रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 16, 2020 at 6:16am

आ . भाई अमन जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by AMAN SINHA on May 16, 2020 at 6:16am

श्रीमान कबीर साहब,

हौंसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद। 

Comment by Samar kabeer on May 15, 2020 at 7:58pm

जनाब अमन सिन्हा जी आदाब, अच्छी रचना हुई, बधाई स्वीकार करें ।

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