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हक़ीक़त जुदा थी कहानी अलग है
सुनो ख़्वाब से ज़िंदगानी अलग  है

ये गरमी की बारिश सुकूँ है अगरचे
मग़र आँख से बहता पानी अलग है

है खानाबदोशों की ख़ामोश  बस्ती
यहाँ ज़िन्दगी का मआनी अलग  है

मियां  शायरी  को ज़रा  मांजियेगा
कहे ऊला कुछ और सानी अलग है

पढ़ें गौर से  जल्दबाजी  न  कीजे
ग़ज़ल  की मधुरता रवानी अलग है

सँजोता नहीं 'ब्रज' ह्रदय में किसी को
तसव्वुर  तेरा  शादमानी  अलग  है

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2022 at 4:05pm

आ. भाई ब्रिजेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुन्दर इजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 11, 2022 at 4:30pm

आदरणीय अवनीश जी सादर धन्यवाद

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 11, 2022 at 4:29pm

आदरणीय अमीरुद्दीन जी सुधार किए हैं...हाँ मआनी के लिए कुछ उचित अभी कर नहीं पाया...लेकिन उसमें भी सुधार हो सकता है।

एक बार फिर आपका हार्दिक धन्यवाद

Comment by Awanish Dhar Dvivedi on August 9, 2022 at 11:19pm
सुन्दर सृजन। हार्दिक शुभकामनायें।
Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 9, 2022 at 5:39pm

//मैंने भी "ज़िन्दगी का" शब्द लिया है ..."ज़िन्दगी के" नहीं...थोड़ा सा और प्रकाश डालें क्या "ज़िन्दगी का" लेना उचित नहीं है??//

आदरणीय ब्रज जी , मानी=अर्थ (एकवचन), मआनी= अनेकार्थ (बहुवचन)

अब आप ख़ुद फ़ैसला कर लें। 

1. यहाँ ज़िन्दगी का मआनी (अनेकार्थ) अलग है, (व्याकरण की दृष्टि से ग़लत वाक्य विन्यास) 

2. यहाँ ज़िन्दगी का मानी (अर्थ) अलग है, (बह्र से ख़ारिज) 

3. यहाँ ज़िन्दगी के मआनी (अनेकार्थ) अलग हैं (रदीफ़ बदल रही है) 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 9, 2022 at 11:49am

आदरणीय अमीरुद्दीन जी मैंने भी "ज़िन्दगी का" शब्द लिया है ..."ज़िन्दगी के" नहीं...थोड़ा सा और प्रकाश डालें क्या "ज़िन्दगी का" लेना उचित नहीं है??

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 7, 2022 at 10:04pm

जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी, 

//फसाना पूर्णरूप से काल्पनिक हो सकता है लेकिन कहानी कई बार सत्य भी होती है...//

जनाब, फ़साना और कहानी पर्यायवाची शब्द हैं, कहानी सच्ची भी हो सकती है मगर उसे सच्ची कहानी या सत्यकथा कहेंगे। 

//मआनी शब्द बहुवचन है परंतु शहरयार की ग़ज़ल का शेर देखिए

कहते हैं मेरे हक़ में सुख़नफ़ह्म बस इतना

शे'रों में जो ख़ूबी है मआनी से नहीं है। एकवचन लिया गया है// 

जी नहीं, एकवचन नहीं लिया गया है ग़ौर फ़रमाएं, शहरयार यहाँ 'शे'रों की ख़ूूबी' (एकवचन) का ज़िक्र कर रहे हैं, इसलिये यहाँ 'नहीं है' आ रहा है। 

//महमूद अयाज़ की ग़ज़ल का मतला भी देखें

लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करो...यहां भी एकवचन ही लग रहा है//

ऐसा नहीं है, यहाँ भी बहुवचन ही लिया गया है। 

... और आप तो मानते भी हैं और जानते भी हैं कि 'मआनी' शब्द बहुवचन है तो फिर मसला ही कोई नहीं है। सादर। 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 7, 2022 at 3:08pm

आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी ग़ज़ल की विस्तृत समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आपका...फसाना और कहानी में थोड़ा अन्तर होना चाहिए... फसाना पूर्णरूप से काल्पनिक हो सकता है लेकिन कहानी कई बार सत्य भी होती है...इसलिए फसाना और कहानी अलग अलग लिया है...हालांकि आपका सुझाव "हक़ीक़त" भी बहुत उम्दा है...

ये गरमी की बारिश सुकूँ है अगरचे

मग़र आँख से बहता पानी अलग है.... मिसरों में रब्त का अभाव है, कहन स्पष्ट नहीं है। 

कहन स्पष्ट है आदरणीय... जहाँ तन और मन दोनों व्यथित हैं वहाँ बाहरी बारिश से तन को सुकूँ मिल जाता है लेकिन अंतस की व्यथा से आँखों की बारिश होती है लेकिन वो और अधिक पीड़ादायी है।

है खानाबदोशों की ख़ामोश बस्ती

यहाँ ज़िन्दगी का मआनी अलग है.... 'मआनी' शब्द बहुवचन है, रदीफ़ हैं हो रही है। 

मियां शायरी को ज़रा मांजियेगा

मआनी शब्द बहुवचन है परंतु शहरयार की ग़ज़ल का शेर देखिए

कहते हैं मेरे हक़ में सुख़नफ़ह्म बस इतना
शे'रों में जो ख़ूबी है मआनी से नहीं है। एकवचन लिया गया है इसके अलावा

महमूद अयाज़ की ग़ज़ल का मतला भी देखें

लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करो...यहां भी एकवचन ही लग रहा
होश वाले हो तो हर बात को समझा न करो

हाँ उला मैंने गलत ले लिया इसमें सुधार करता हूँ

बाकी शेर भी सुधारने योग्य हैं...आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 6, 2022 at 9:52pm

पुनश्च:

//पढ़ो गौर से जल्दबाजी न कीजे... कीजै के साथ 'पढ़ो' नहीं 'पढ़ें' चलेगा।//

भूल सुधार :

कीजै के साथ 'पढ़ो' नहीं 'पढ़िये' चलेगा।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 6, 2022 at 5:16pm

जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, ख़ूबसूरत ख़याल के साथ ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।

फ़साना जुदा था कहानी अलग है.... जनाब फ़साना और कहानी एक ही बात है। 

सुनो ख़्वाब से ज़िंदगानी अलग है.... ऊला यूँ कर सकते हैं - हक़ीक़त जुदा थी... 

ये गरमी की बारिश सुकूँ है अगरचे

मग़र आँख से बहता पानी अलग है.... मिसरों में रब्त का अभाव है, कहन स्पष्ट नहीं है। 

है खानाबदोशों की ख़ामोश बस्ती

यहाँ ज़िन्दगी का मआनी अलग है.... 'मआनी' शब्द बहुवचन है, रदीफ़ हैं हो रही है। 

मियां शायरी को ज़रा मांजियेगा

उला कुछ कहे और सानी अलग है... उला नहीं 'ऊला'.. यूँ कर सकते हैं- कहे ऊला कुछ और.. 

पढ़ो गौर से जल्दबाजी न कीजे..... कीजै के साथ 'पढ़ो' नहीं 'पढ़ें' चलेगा। 

ग़ज़ल की मधुरता रवानी अलग है

शग़ल तो नहीं 'ब्रज' फ़क़त याद करना.... भाव स्पष्ट नहीं हुआ। 

तसव्वुर तेरा शादमानी अलग है.... ऊला यूँ कर सकते हैं - 'मैं यादें सभी की संजोता नहीं 'ब्रज'.... शुभ-शुभ।

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