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अतुकांत कविता : सुनो ना (गणेश बागी)

अतुकांत कविता : सुनो ना
=====
सुनो ना,
कहनी है मुझे
दिल की बात..

जब घर से निकलता हूँ
और कोई पूछ लेता है,
कहाँ जा रहे हो
मैं बुरा नहीं मानता

जब चलता हूँ गाड़ी से
और बिल्ली काट देती है रास्ता
मैं रुकता नहीं
चलता रहता हूँ
मैं नही मानता अंधविश्वास

जब भी निकलता हूँ
किसी महत्वपूर्ण कार्य हेतु
माँ खिलाती है
दही और चीनी

माँ को है विश्वास
ऐसा करना
होता है शुभ
मुझे विश्वास है माँ पर

सुबह सुबह
जब सो कर उठता हूँ
और देख लेता हूँ
तुम्हारा चाँद-सा चेहरा
सच कहता हूँ
बन जाता है
मेरा दिन,
मुझे यक़ीन है
यह नही है कोई अंधविश्वास

सुनो ना
कहनी है मुझे

दिल की बात ।।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 273

Comment

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Comment by Samar kabeer on December 30, 2022 at 3:34pm

जनाब गणेश जी 'बाग़ी' साहिब आदाब, उम्द: अतुकांत कविता लिखी आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sushil Sarna on December 27, 2022 at 8:58pm
वाहहहहहह आदरणीय गणेश जी बहुत ही सुंदर प्रस्तुति हुई है सर । हार्दिक बधाई सर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 27, 2022 at 8:40pm

आ. भाई गणेश बागी जी, सादर अभिवादन। बहुत ही उत्तम रचना हुई है। बहुत बहुत हार्दिक बधाई।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 27, 2022 at 7:09pm

प्रणाम आदरणीय, प्रथम और उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार ।

Comment by Shyam Narain Verma on December 27, 2022 at 5:57pm
नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और ज्ञान वर्धक प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर

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