2122 1212 22/112
इश्क़ में दिल-जले नहीं होते
काश के तुम मिरे नहीं होते
बस ज़रूरत बिगाड़ देती है
लोग वर्ना बुरे नहीं होते
यूँ चमत्कार रोज़ होते हैं
बस हमारे लिए नहीं होते
दोष मत दो नसीब को अपने
दुनिया में ग़म किसे नहीं होते
एक बिजली जला गई थी यूँ
ये शजर अब हरे नहीं होते
तोड़ना दिल मुझे भी आता है
काश तुम फूल-से नहीं होते
'ज़ैफ़' उनका तो हो गया लेकिन
वो कभी 'ज़ैफ़' के नहीं होते
(मौलिक/अप्रकाशित)
Comment
आदरणिय ज़ैफ़ जी, बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।
बहुत आभार आपका आ. तपन जी। सादर।
ज़ैफ़ भाई बहुत अच्छी गजल हुई है। पड़ कर बड़ा अच्छा लगा बहुत बहुत बधाई।
आ. लक्ष्मण जी, बहुत आभार।
आ. समर गुरुजी , बहुत शुक्रिया आपका।
आ. भाई जैफ जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
जनाब ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online