यूँ तो जीवन हर समय, मृगतृष्णा के पास
सच हो जाते स्वप्न पर, करके सत्य प्रयास।१।
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देख दिवस में सप्न जो, करता खूब प्रयत्न
वह उनको साकार कर, पा लेता है रत्न।२।
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जिसने जीवन में किया, सपने को कर्तव्य
टूटा करता वह नहीं, बन जाता है भव्य।३।
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स्वप्न बने उद्देश्य जब, करना पड़ता कर्म
जीवन में सबसे प्रथम, समझ इसे ही धर्म।४।
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निज जीवन के स्वप्न जो, पर हित में दे त्याग
मान उसे सबसे अधिक, सपनों से अनुराग।५।
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सपने कैसे पूर्ण हों, जो ये करे विचार
कर लेता है कर्म को, निज दैनिक व्यौहार।६।
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तन-मन अर्पित जो करे, धारण करके धीर
सार्थक उसके सप्न कर, व्यर्थ न जाता तीर।७।
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सपने मिलते धूल में, भाग्य न दे जब साथ
कारण इसका बैठना, धरे हाथ पर हाथ।८।
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जो जीवन कर्मठ रहा, कष्ट शूल को मार
बाधा बनता कब समय, सपनो के आधार।९।
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सपने रहें अपूर्ण तो, मत किस्मत को कोस
करने को साकार वो, निज बल बुद्धि परोस।१०।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
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