दोहा सप्तक. . . . उल्फत
याद अमानत बन गयी, लफ्ज हुए लाचार ।
पलकों की चिलमन हुई, अश्कों से गुलजार ।।
आँखों से होते नहीं, अक्स नूर के दूर ।
दर्द जुदाई का सहे, दिल कितना मजबूर ।।
उल्फत में रुसवाइयाँ, हासिल हुई जनाब ।
मिला दर्द का चश्म को, अश्कों भरा खिताब ।।
उलझ गए जो आँख ने, पूछे चन्द सवाल ।
खामोशी से ख्वाब का, देखा किए जमाल ।।
हर करवट महबूब की, यादों से लबरेज ।
रही सताती रात भर, गजरे वाली सेज ।।
हासिल दिल को इश्क में, ऐसी हुई किताब ।
हर पन्ने में बस मिला, सूखा हुआ गुलाब ।।
शमा जली महफिल सजी, रोशन हुई बहार ।
परवाने का इश्क में, आखिर सुलगा प्यार ।।
सुशील सरना / 18-4-25
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