For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आशिकों को इस कदर दिलदार होना चाहिए

 

 

दिल  लगाना   हमने  सुना   है , एक गुनाह  है  यहाँ  

 सारी  दुनिया  को  फिर तो  गुनाहगार  होना  चाहिए ..

 

 

सुना  है , मजा    है बहुत , महबूब  के  इन्तजार  में  

ताउम्र  फिर  उसका  ही  इन्तजार  होना  चाहिए  ..,

 

टूट  रहे  हैं  डोर  रिश्तों  के बहुत  रफ्तार       से   

इस कदर   भी  नही  रिश्तों  में  दरार  होना  चाहिए  ..,

 

चंद  सिक्कों  ने  लुटा  है  नीद  और  सपने  यहाँ  

सिक्कों  का  शोर  नही     इतना  भी  असरदार  होना  चाहिए  ,

 

कायदे  तोड़े  हमने  हैं  यहाँ अपनी  मर्जी  से  सब  

 कुछ  तो  खुदा  पर  भी  तो  ऐतबार  होना  चाहिए  ,

 

दर्द  होता  है  बहुत,   देख,  जानवरों  को  गले  लग   रोते   हुए  

इंसानियत   से  हमे  क्या  इस  कदर  बेजार  होना  चाहिए   ?

 

बिक  गये  कुछ  इमां  जो  भी  बचे  थे  यहाँ  

गजलों को ही कम से कम  इमानदार  होना  चाहिए ,

 

खुद  को  कब  तक  बरगलायेंगे   आप  ये तो  बताईये  जनाब  

खुद  से  तो  कम  से  कम  वफादार  होना  चाहिए  ,

 

उलझ  कर  लटों  में  भी  दिल  न  नापाक  हो  कभी  

आशिकों  को  इस  कदर  दिलदार  होना  चाहिए  ,

 

खून  से  लिख  दे  गजल  जब  वतन  खतरे  में  हो ,
 शायर के लहू का हर कतरा देश का कर्जदार होना चाहिए ,
 
 
दुनिया में रह दुनिया वालों से प्यार होना चाहिए ,
इश्क  है  तो  इश्क  का  इजहार  होना  चाहिए 
 
 

 

 

 

 

 

Views: 669

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by siyasachdev on October 2, 2011 at 5:04pm

achha pryaas hain thodha sa bahar ka khyaal rakhe...bhav ache hain aapke bahut...

Comment by Abhinav Arun on October 2, 2011 at 3:24pm

श्री राजीव जी ! आपके विचार और भाव बहुत गहरे हैं लिखते रहिये हुनर को मांजने में कुछ वक़्त तो लगता है कहा गया हैं न ..

" प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है ,

   नए परिंदे को उड़ने में वक़्त तो लगता है "

hardik shubhkaamnayen !!

Comment by Rajeev Kumar Pandey on October 2, 2011 at 2:05pm

bhai aashish ji hum chahenge ki aap is gajal ko sudhar kar hme mail kar dein taki hmee sikhne ka mauka milega .. kyunki likhte waqt hme jo shi lga tha hmne likha tha.. aur padhte waqt mujhe ye shi lga pura krne ke baad,aur apni galti khud pakadna muskila ai jra mee liye .. .. baki bura manne wali bat nhi hai..bas hUM  change ki aap is sudhar kr hme mail kar dein.. meri id hai rkpindia1987@gmail.com

bak gajl pe dhyan dene ke lye shukriya

agrim dhnywad sahit .

Comment by आशीष यादव on October 2, 2011 at 12:35am

सुन्दर भावों में ग़ज़ल कहने का खुबसूरत प्रयास किया है आपने| लेकिन अपनी इन्ही पंक्तियों को आप अमल कर ग़ज़ल लिखे तो सच में आप बहुत अच्छा लिख सकते हैं|

"कायदे  तोड़े  हमने  हैं  यहाँ अपनी  मर्जी  से  सब"

कुछ कायदा टूटता हुआ सा मालूम हो रहा है बहर का, बुरा न मानियेगा प्लीज, मुझे भी बहुत जानकारी नहीं लेकिन जितना है बता देता हूँ|

"खुद  को  कब  तक  बरगलायेंगे   आप  ये तो  बताईये  जनाब"

इन पंक्तियों पर मै ये कहूँगा की ये बहुत अच्छी है, लेकिन आप इनसे ये अमल कीजिये की आप कब तक बिना बहर ग़ज़ल लिखेंगे| बरगलाना उचित तो नहीं है, है ना|

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 1, 2011 at 10:54am

भाई राजीव कुमार जी, आपकी इस ग़ज़ल के भाव अच्छे है .....इस प्रयास के लिए आपको बहुत बहुत बधाई ....यदि आप थोडा सा श्रम करें तो यह नियमों का पालन करके ग़ज़ल के शिल्प में बाँधी जा सकती है .......उदाहरण के लिए -

कायदे  तोड़े   हैं  हमने अपनी  मर्जी  से  सभी,

कुछ तो अपने आप पर ऐतबार  होना चाहिए|

आशा करता हूँ कि आप इस दिशा में प्रयास अवश्य करेंगें और आपकी यह पूरी की पूरी ग़ज़ल ही शिल्प में होगी .......बहर के लिए इसे इस गीत की धुन में गाकर लिखें ....."आपकी नज़रों नें समझा प्यार के काबिल मुझे ..."

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service