For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

त्यागपत्र (कहानी)

त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी.

अंक 1 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

.............. अंक -- 2 .....................

राज्य के विधायकों में पी. पी. सिंह का एक अलग ही स्थान था. अपनी स्पष्टवादिता एवं निर्भीकता के लिए वे विख्यात थे.सत्तापक्ष के विधायक होने के बावजूद भी सरकार की गलत नीतियों की आलोचना वे सार्वजनिक रूप में किया करते थे. जब पी.डब्लू. डी. मंत्री ने अपने एक रिश्तेदार को गलत ढंग से ठेका दे दिया था तो विधान सभा में विपक्ष के साथ-साथ प्रबल बाबू भी सरकार पर बरस पड़े थे. उनका यह तेवर देखकर पार्टी
अध्यक्ष गहरी सोच में पड़ गए. उन्हें महसूस हुआ कि यदि इस शेर को पिंजड़े में बंद नहीं किया गया तो सरकार की सेहत को खतरा हो सकता है. इंसान को दुर्बल करने के लिए उसकी आत्मा को मारना होता है. पार्टी अध्यक्ष उमाकांत ने शेर के सामने माँस का लोथड़ा डालना ही उचित समझा. उमाकांत ने बड़ी ही आत्मीयता एवं प्यार से प्रबल बाबू को अपने आवास पर रात्रि भोज पर आमंत्रित किया.  बमुश्किल दो वक़्त की रोटी कमाने वाले वे लोग, शायद इस तरह के भोज की प्रकृति एवं प्रवृति के सन्दर्भ में अनुमान भी नहीं लगा सकते, जो चुनाव के वक़्त जनता से जनार्दन बन जाते हैं. शिष्टाचार में दिए  जाने वाले  इस तरह के भोज में भोजन की प्रधानता होती ही नहीं है.

उमाकांत जी के यहाँ भी यही हुआ. उमाकांत जी की शारीरिक संरचना उनकी सम्पन्नता का मूक बखान करती थी. चेहरे पर सौम्यता लाने का
वो लाख कोशिश करते थे.....   फिर भी पारखी नज़र रखनेवालों की नज़र से उनके चेहरे के कोने में पसरी कुटिलता छिप नहीं पाती थी. उन्होंने प्रबल प्रताप सिंह की तारीफ़ के पुल बाँधते हुए कहा - 'आप जैसे निर्भीक एवं ईमानदार व्यक्ति ही लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी हो सकते हैं. मुझे सख्त अफसोस है कि यह प्रदेश आज तक आपके सक्रिय योगदान से वंचित रहा.......' 

प्रबल बाबू को अध्यक्ष महोदय की बातें सुनकर कुछ खटका सा लगा और उन्होंने बीच में ही अध्यक्ष महोदय को .....                                                                                                                                                                                                                                                    
(क्रमश:)

अंक 3 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

Views: 547

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 3, 2011 at 12:05pm

सादर महोदय... .

Comment by satish mapatpuri on November 3, 2011 at 1:37am
एक बात : धारावाहिक कहानियों में वाक्य क्रमशः के क्रम
में अधूरे नहीं छोड़े जाते हैं. यदि कहीं ऐसा उदाहरण आपको मिला भी हो तो वह कोई उचित
उदाहरण नहीं है.

 

आदरणीय मित्रवर, मैं शत - प्रतिशत आपसे सहमत हूँ ................... मुझे
कहीं ऐसा उदाहरण नहीं मिला है. सच तो यह है कि उस समय  यहाँ लोक आस्था का महापर्व
छठ का माहौल था और बीच में ही मुझे एक रिश्तेदार के यहाँ जाना पड़ गया था
.................. शीघ्रता में यह भूल हो गयी है .............. आदरणीय सौरभ जी,
मैं तो इस तरफ ध्यान भी नहीं दे पाया ---------------   आपने याद दिलाई तो मुझे याद
आया .................... मैं इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 2, 2011 at 2:54pm

सतीशजी,  कहानी त्यागपत्र बहुत अच्छे जा रही है.   कहानी का कथ्य अभी तक रोचक लग रहा है और कथानुरूप आवश्यक नाटकीयता को आपने बेहतर प्रवाह के साथ बनाये रखा है. उत्सुकता बनी है, भाईजी.

 

एक बात :  धारावाहिक कहानियों में वाक्य क्रमशः के क्रम में अधूरे नहीं छोड़े जाते हैं. यदि कहीं ऐसा उदाहरण आपको मिला भी हो तो वह कोई उचित उदाहरण नहीं है.

सादर.

 

Comment by satish mapatpuri on November 1, 2011 at 12:45pm
शुक्रिया गुरूजी, आपकी शुभेक्षा बनी रहनी चाहिए
Comment by Rash Bihari Ravi on October 31, 2011 at 12:50pm

sir bahut sundar ja rha hain kahani ham ta ihe kahab aag lagaiba ka ho baba

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
11 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service