For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

त्यागपत्र (कहानी)


त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

अंक 2 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

-------------- अंक - 3 ---------------

प्रबल बाबू को अध्यक्ष महोदय की बातें सुनकर कुछ खटका सा लगा और उन्होंने बीच में ही उन्हें टोकते हुए कहा -  'शायद, इस प्रसंग पर बात करने के लिए यह उचित समय नहीं है.'

अध्यक्ष भी मंजे हुए व्यक्ति थे, उन्होंने सिंह साहेब को यह कहकर निरुत्तर कर दिया - 'शायद आपको भूख लगी है? .. मैं खाने के लिए कुछ यहीं मँगा लेता हूँ '.

प्रबल बाबू को तत्क्षण कोई सटीक जवाब सूझ नहीं पा रहा था.  उमाकांत जी की अनुभवी निगाहें सिंह साहेब के चेहरे का सूक्ष्म निरीक्षण कर रही थीं. वो कुछ बोलते, इसके पहले उमाकांत जी ही बोल पड़े -  'प्रबल बाबू ! हमलोग जनता के सेवक हैं, मिल-बैठ कर बातें करने का अवसर भला मिलता कहाँ है? ... इसे तो एक संयोग ही मानिए कि हम  इस तरह अकेले आमने-सामने बैठे हैं. मैं यहीं खाना मँगवा लेता हूँ, खाते भी रहेंगे और बातें भी होती.. ’

प्रबल बाबू समझ चुके थे कि वो जाल में फँस चुके हैं. अनमने ढंग से उन्होंने कहा - 'नहीं,  इसकी कोई जरुरत नहीं है.'

अध्यक्ष महोदय ने कुर्सी पर पहलू बदलते हुए कहा - 'प्रबल बाबू, मुझे प्रशंसक नहीं आलोचक ही पसंद हैं, जो जाने-अनजाने हो रही गलतियों का एहसास करा सकें. मुझे फ़ख्र है कि मेरी पार्टी का एक विधायक अत्यंत ईमानदार है और उसे ज़िम्मेदार बनाने का मुझे पूरा अधिकार है.'

यह कहते हुए उमाकांत जी ने अपनी गिद्ध-दृष्टि प्रबल प्रताप के चेहरे पर गड़ा दी. प्रबल बाबू हा.. किये उनकी तरफ देख रहे थे. अध्यक्ष की पैनी निगाहें सिंह साहेब के चेहरे पर आ रही शिकन और भावों की पड़ताल कर रहीं थीं. अब अध्यक्ष ने अमोघ अस्त्र का वार करना ही उचित समझा. .........                                       

(क्रमश:)

अंक 4 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

Views: 538

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 3, 2011 at 12:10pm

भाई सतीशजी, आपने अपने स्पष्टिकरण में जो बात कही है, आप विश्वास करें, मैंने भी अपने अंदर के पाठक को इसी बात का संदर्भ दे कर समझाया था. लेकिन अनुमोदन हेतु आपसे पूछ लिया. फिर भी, कुछ रेशनलाइजेशन रचनाओं, विशेषकर कहानियों को, विश्वस्त बनाती है.

सादर.. .

Comment by satish mapatpuri on November 3, 2011 at 2:03am

आदरणीय सौरभ जी, मैंने जान - बुझ कर ऐसा लिखा है ..................... मैंने ये
सोचा कि जब अध्यक्ष ने ये कहा 'शायद आपको भूख लगी है? .. मैं
खाने के लिए कुछ यहीं मँगा लेता हूँ '.
तो यहीं शब्द पर सिंह साहेब को
लगा की खाने की जगह से इतर खाना मंगाना शायद उचित नहीं है. मैंने संदेह का लाभ लेने
का भी प्रयास किया है --- " प्रबल
बाबू
को
तत्क्षण कोई सटीक
जवाब सूझ नहीं पा रहा था."
........................ ऐसी स्थिति में ऐसा
अटपटा जावाब संभव हो सकता है. फिर भी मैं आगे से आपकी चेतावनी पर ध्यान दूंगा
आदरणीय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 2, 2011 at 3:09pm

//प्रबल बाबू समझ चुके थे कि वो जाल में फँस चुके हैं. अनमने ढंग से उन्होंने कहा - 'नहीं,  इसकी कोई जरुरत नहीं है.'//

सतीशजी, इस पंक्ति ने कहानी की तारतम्यता को थोड़ा बाधित किया है.  जब उमाकंत ने प्रबल बाबू को खाने के लिये ही न्यौता था तो खाना मँगाने की बात पर उनके मुँह से नहीं इसकी जरूरत नहीं कैसे कहवाया जा सकता है?

दूसरे, कहानी में पात्रों के वार्त्तालाप के क्रम में आवश्यक मनोवैज्ञानिक पक्ष को थोड़ा और उभारा जा सकता था. 

 

यह अवश्य है कि कहानी में कसावट है.

शुभकामनाएँ.


Comment by satish mapatpuri on November 1, 2011 at 12:43pm
आभार आदरणीय अरुण जी
Comment by Abhinav Arun on November 1, 2011 at 9:18am

वाह बढ़िया !! अब देखना है अमोघ अस्त्र किसपर वार करता है ... अच्छा ताना बाना बुना है सतीश जी हार्दिक बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"मुशायरे की अच्छी शुरुआत करने के लिए बहुत बधाई आदरणीय जयहिंद रामपुरी जी। बदलना ज़िन्दगी की है…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी, पोस्ट पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"पगों  के  कंटकों  से  याद  आयासफर कब मंजिलों से याद आया।१।*हमें …"
6 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय नीलेश जी सादर अभिवादन आपका बहुत शुक्रिया आपने वक़्त निकाला मतला   उड़ने की ख़्वाहिशों…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उन्हें जो आँधियों से याद आया मुझे वो शोरिशों से याद आया अभी ज़िंदा हैं मेरी हसरतें भी तुम्हारी…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. शिज्जू भाई,,, मुझे तो स्कॉच और भजिये याद आए... बाकी सब मिथ्याचार है. 😁😁😁😁😁"
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तुम्हें अठखेलियों से याद आया मुझे कुछ तितलियों से याद आया  टपकने जा रही है छत वो…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय दयाराम जी मुशायरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई आपको"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय निलेश नूर जीआपको बारिशों से जाने क्या-क्या याद आ गया। चाय, काग़ज़ की कश्ती, बदन की कसमसाहट…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, मुशायरे के आग़ाज़ के लिए हार्दिक बधाई, शेष आदरणीय नीलेश 'नूर'…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"ग़ज़ल — 1222 1222 122 मुझे वो झुग्गियों से याद आयाउसे कुछ आँधियों से याद आया बहुत कमजोर…"
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"अभी समर सर द्वारा व्हाट्स एप पर संज्ञान में लाया गया कि अहद की मात्रा 21 होती है अत: उस मिसरे को…"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service