त्यागपत्र (कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी.
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.............. अंक -- 2 .....................
राज्य के विधायकों में पी. पी. सिंह का एक अलग ही स्थान था. अपनी स्पष्टवादिता एवं निर्भीकता के लिए वे विख्यात थे.सत्तापक्ष के विधायक होने के बावजूद भी सरकार की गलत नीतियों की आलोचना वे सार्वजनिक रूप में किया करते थे. जब पी.डब्लू. डी. मंत्री ने अपने एक रिश्तेदार को गलत ढंग से ठेका दे दिया था तो विधान सभा में विपक्ष के साथ-साथ प्रबल बाबू भी सरकार पर बरस पड़े थे. उनका यह तेवर देखकर पार्टी
अध्यक्ष गहरी सोच में पड़ गए. उन्हें महसूस हुआ कि यदि इस शेर को पिंजड़े में बंद नहीं किया गया तो सरकार की सेहत को खतरा हो सकता है. इंसान को दुर्बल करने के लिए उसकी आत्मा को मारना होता है. पार्टी अध्यक्ष उमाकांत ने शेर के सामने माँस का लोथड़ा डालना ही उचित समझा. उमाकांत ने बड़ी ही आत्मीयता एवं प्यार से प्रबल बाबू को अपने आवास पर रात्रि भोज पर आमंत्रित किया. बमुश्किल दो वक़्त की रोटी कमाने वाले वे लोग, शायद इस तरह के भोज की प्रकृति एवं प्रवृति के सन्दर्भ में अनुमान भी नहीं लगा सकते, जो चुनाव के वक़्त जनता से जनार्दन बन जाते हैं. शिष्टाचार में दिए जाने वाले इस तरह के भोज में भोजन की प्रधानता होती ही नहीं है.
उमाकांत जी के यहाँ भी यही हुआ. उमाकांत जी की शारीरिक संरचना उनकी सम्पन्नता का मूक बखान करती थी. चेहरे पर सौम्यता लाने का
वो लाख कोशिश करते थे..... फिर भी पारखी नज़र रखनेवालों की नज़र से उनके चेहरे के कोने में पसरी कुटिलता छिप नहीं पाती थी. उन्होंने प्रबल प्रताप सिंह की तारीफ़ के पुल बाँधते हुए कहा - 'आप जैसे निर्भीक एवं ईमानदार व्यक्ति ही लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी हो सकते हैं. मुझे सख्त अफसोस है कि यह प्रदेश आज तक आपके सक्रिय योगदान से वंचित रहा.......'
प्रबल बाबू को अध्यक्ष महोदय की बातें सुनकर कुछ खटका सा लगा और उन्होंने बीच में ही अध्यक्ष महोदय को .....
(क्रमश:)
Comment
सादर महोदय... .
सतीशजी, कहानी त्यागपत्र बहुत अच्छे जा रही है. कहानी का कथ्य अभी तक रोचक लग रहा है और कथानुरूप आवश्यक नाटकीयता को आपने बेहतर प्रवाह के साथ बनाये रखा है. उत्सुकता बनी है, भाईजी.
एक बात : धारावाहिक कहानियों में वाक्य क्रमशः के क्रम में अधूरे नहीं छोड़े जाते हैं. यदि कहीं ऐसा उदाहरण आपको मिला भी हो तो वह कोई उचित उदाहरण नहीं है.
सादर.
sir bahut sundar ja rha hain kahani ham ta ihe kahab aag lagaiba ka ho baba
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