For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यास बुझती नहीं ..

प्यास बुझती नहीं ..

देश था परतंत्र

गुजरे ज़माने की बात है

मुद्दतों बाद तुमसे मुलाकात है.

गुलामी की ज़ंजीर डली थी पाँव मे.

तपती धूप

दोपहरी जेठ की

कौन बैठता था छाओं में.

पर प्यास तो थी

जीभ पर नहीं

ज़हन में .

युवाओं के सिर पर

ज़नून था आज़ादी का

फौलादी नसों  में

इन्कलाब था.

खून नहीं

लोहा दौड़ता था नसों में

और

अंग्रेजों की मौत का

सैलाब था .

ज़नून था

खुद मर मिटने का.

बया के घोंसलों सी

लटकती थी लाशें

यहाँ वहां

भारत माँ के सपूतों की.

ये प्यास थी इन्कलाब की

जिसके दम से

आज मैं और तुम

सांस ले रहे हैं

खुले आसमान के नींचे.

पर

आज मेरे देश में क्या नहीं है  ?

हरयाली है

खुशहाली है

पर बहुत से पेट

आज भी खाली हैं !

क्यों ?

एक प्यास आज भी है ..

जो बुझती नहीं

एक हवस है

जो रूकती नहीं

खाली पेटों में नहीं ..

भरे पेटों में  ! !
गिद्ध

नोंच रहे हैं

और

हम
सोच रहे हैं .

सर झुकाए खड़े हैं
मुर्दा से गड़े हैं

डाल रहे हैं

वोट

दे रहे है
सपोर्ट

बढ़ा रहे हैं

उनकी प्यास

जो बुझती नहीं ...

रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा

Views: 376

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ajay Kumar Sharma on January 7, 2012 at 10:35am

धन्यवाद अरुण कुमार पाण्डेय " अभिनव " जी . गणेश जी " बागी " जी ..ये आज हर जनमानस के मन की व्यथा है जो मेरी कविता में फूट पड़ी है..कविता की आत्मा तक पहुंचने का आभार.... 

Comment by Abhinav Arun on January 7, 2012 at 8:54am

आज की पीढ़ी को सन्देश देती और आइना दिखाती रचना के लिए हार्दिक साधुवाद डॉ अजय जी हार्दिक बधाई इस  रचना केलिए |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 6, 2012 at 9:22pm

बया के घोंसलों सी

लटकती थी लाशें

यहाँ वहां

भारत माँ के सपूतों की.

ये प्यास थी इन्कलाब की

आह , मन व्यथित हो जाता है, उन्होंने सपनों में भी नहीं सोचा होगा, कि आजाद भारत कि दुर्दशा माँ भारती के सपूत ही करेंगे , बहुत ही मार्मिक रचना, बधाई स्वीकार करे डॉ साहब इस बुलंद अभिव्यक्ति पर |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service