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लघु कथा : "अधिकार"

सूरज  बदहवास सा खेतों के मेड़ों पर चला जा रहा था , बचपन में पिता का साया सर से छिन गया था , बहनों की शादी हो चुकी थी, जिनसे उसके उम्र का फासला बहुत था, उम्र अभी १७ वर्ष मगर जिम्मेदारियों का पहाड़ सर पर, गरीबी हो तो इंसान के लिए छोटी छोटी जरूरतें भी पहाड़ जैसी ही लगती हैं. छोटे चाचा ने सारी जमीने अपने नाम करा ली थी..सुरजू,,,,यही नाम था घर में सब प्यार से विषाद से इसी नाम से बुलाते थे, बहने तो उसे छोटा सा बच्चा समझती थीं, मगर सुरजू का मन अपनी उम्र से अधिक सोचने लगा था. सुबह सुबह एकलौते छोटे से खेत के टुकड़े पर जाकर अपनी फसल को निहारना , एक बैल जिसके लिए दाने, पानी का इन्त्जाम  करना, एक छोटी सी फसल और पूरे वर्ष माँ , बेटे का पेट और अन्य जरूरतें .शायद कठिन कहने से काम नहीं चल सकता , बहुत कठिन था, बहने कुछ पैसे भेजती रहती थी. सबसे छोटी बहन सुरजू का बहुत ख़याल रखती थी,और उसकी जरूरतों की ताकीद करती रहती थी, क्योंकि इस बार उसकी १२ वी की परीक्षा में खरा उतरना था.

कुछ दिनों से मन में एक खलिश थी, क्योंकि उसके दोस्त रमेश ने जो उसके दुःख तकलीफ का हमराज था, उसे सलाह दी थी की वो अपने चाचा पर मुक़दमा दायर कर दे , और आज उस मुकदमे की तारीख थी, और साथ ही १२ बजे के बाद उसका इम्तिहान भी था. कैसे करेगा वो ये सब , अभी तो वो माइनर  है - कोर्ट की भाषा में उम्र के लिहाज से , बहनों ने भी उसे बहुत नसीहत दी थी की अगर वो पढ़ लिख लेगा तो शायद जमीनी लड़ाई लड़ सके मगर उसे तो अपनी जमीन वापस लेनी थी , उम्र का ख्याल नहीं था.

खैर सुरजू ने सुबह की दिनचर्या ख़तम कर के माँ की बनाई चाय पी और रोटी के बीच में एक आम के अचार का टुकडा दबाकर कर अपने झोले में कॉपी किताब के साथ रख कर साइकिल के पहियों की गति बढाता गया, पहली मंजिल कोर्ट थी. वकील से गुजारिश के बाद उसकी सुनवाई दूसरे नंबर पर थी...चाचा ने इस सुनवाई की तारीख जानबूझकर आज के दिन ही रखवाई थी . क्योंकि आज उसका बोर्ड का इम्तिहान था.
खैर कटघरे में खडा हुआ जज के सामने, कपडे से झांकती गरीबी, जेब तार तार थी, कॉलर फटा था, और जज से नजरें मिली तो आँखों से आंसू झर-झर बहने लगे..इंसानियत के नाते जज ने पूछा बेटा रो क्यों रहे हो, और सुरजू खुद को रोक नहीं सका , फफक फफक कर कहने लगा जज साब आज मेरा इम्तिहान है, और मैं यहाँ ..आगे नहीं बोल पाया, जज भी द्रवित हो गए और कहा बेटा पहले जाकर अपना इम्तिहान दो , तुम्हारे इम्तिहान के बाद ही अगली सुनवाई होगी,,,जाओ बेटा पहले अपनी परीक्षा दो...सुरजू ने सर झुका कर प्रणाम किया और कोर्ट से तेज क़दमों से निकल गया.,,,.
परिणाम ? उसे अपना अधिकार आखिर मिल ही गया ..ईश्वर ने जज जी को कहा होगा और जज सर ने मुझे मेरी जमीन दिलवा दी - अधिकार ...सत्य की राह पर चलो मिलेगा,,

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Comment by SUMAN MISHRA on December 19, 2012 at 10:01am

shukriya pandey ji

Comment by Shubhranshu Pandey on December 18, 2012 at 6:48pm

प्रस्तुत चित्र के आस पास एक कथा गुथने की कोशिश............

अच्छा प्रयास.......सादर

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