For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ख़ता करके मुकर जाने की लत अच्छी नहीं लगती,
हमें इन लोगों की यारी, कोई यारी नहीं लगती ।

सियासत कर रहे हैं जो गरीबों का लहू पीकर,
उन्हें फिर से जिताने में, समझदारी नहीं लगती ।

मेरी आँखें तेरे दर पर हैं ठुकराई गयी, तब से
किसी की आँख की बूँदें, हमें मोती नहीं लगती।

करीने से सज़ाकर थे रखे कुछ काँच के टुकड़े,
मगर अब काँच की चूड़ी भी कुछ भोली नहीं लगती ।

बचाकर रखती थी चादर में, बर्फीली हवाओं से
माँ, अब मुझको शहर में उस कदर शर्दी नहीं लगती ।

निकलते गाँव से हमने रखा था साथ कुछ मीठा,
'सलिल', गुड की डली मीठी, यहाँ मीठी नहीं लगती ।

------------- आशीष नैथानी 'सलिल'

Views: 879

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 8, 2013 at 7:09pm

शुक्रिया डॉ नूतन डिमरी गैरोला जी.....

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on March 8, 2013 at 7:01pm

सुन्दर  गज़ल ... 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 14, 2013 at 8:36pm

जी 'नादिर जी'... सही कह रहे हैं आप | अपने ही अपनों को लूट रहे हैं |

Comment by नादिर ख़ान on February 14, 2013 at 12:46pm
सियासत कर रहे हैं जो गरीबों का लहू पीकर,
उन्हें फिर से जिताने में, समझदारी नहीं लगती ।
बहुत समझदारी की बात की आशीष जी आपने पर क्या करें जिसे अपना समझो वही अपना नहीं होता ....

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 13, 2013 at 11:09pm

शुक्रिया उपासना जी एवं वेदिका जी...

Comment by वेदिका on February 13, 2013 at 5:30pm

किसी की आँख की बूँदें, हमें मोती नहीं लगती.....

 सुंदर उपमा...!

Comment by upasna siag on January 24, 2013 at 4:02pm

बहुत सुन्दर......

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 21, 2013 at 7:00pm

आदरणीय प्राची जी, आपने ग़ज़ल की छोटी बातों को महसूस किया । शुक्रिया |

आपकी दाद, सादर क़ुबूल करता हूँ  ।

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 21, 2013 at 6:58pm

आदरणीय आचार्य जी, ग़ज़ल आपके मन को भाई, शायद मेरी मेहनत साकार हो गयी ।  प्रणाम |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 21, 2013 at 6:04pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल, 

हर एक शेर बिलकुल दिल से महसूस करके, लिखा गया है, 

बहुत सुन्दर, हार्दिक दाद क़ुबूल फरमाएं आ. आशीष जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service