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तिरंगे हम तेरे सामने सिर झुकाते हैं,


तिरंगे हम तेरे सामने सिर झुकाते हैं,
लेकिन , आज हमारा सिर ,शर्म से झुक रहा है,
हमें धिक्कार है,
पिछले पांच वर्ष महिला राष्ट्रपति रही 
कई प्रदेशों की मुख्यमंत्री महिला रही और हैं,
हमारी सरकार कि नीतियों  पर
प्रत्यक्ष ,अप्रत्यक्ष एक महिला का ही राज है,
और फिर भी  भारत में महिलाएं  असुरक्षित हैं ,
तिरंगे तुझे सलाम है ,
इतने ज़ख्म खाकर भी तू बड़े होंसले के साथ खड़ा है,
तुझे सलाम है ,
बदरंग करने की लाख कोशिशों के बाद भी,
तेरे रंगों की चमक बरक़रार है,
तुझे सलाम है ,
तेरी कमर तोड़ने की लाख कोशिशों के बाद भी ,
तू अडिग,अविचल,अनवरत लहरहा रहा है,
तिरंगे तू मेरी प्रेरणा है ,
हम कसम खाते हैं ,
हम फिर से उठेंगे और
जब तक लहू का एक कतरा भी बाकि है
तेरे होंसले को ,तेरे रंगों की चमक को ,
तेरे संविधान और तेरे सिर को कभी झुकने नहीं देंगे,
तेरे सिर को कभी झुकने नहीं देंगे.

 

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 26, 2013 at 7:47pm

भाव भरी रचना के लिए हार्दिक बधाई डॉ दिलीप मित्तल जी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 26, 2013 at 2:30pm

/तिरंगे हम तेरे सामने सिर झुकाते हैं, आज हमारा सिर गर्व से नहीं, शर्म से झुक रहा है, तेरा संविधान महिला और पुरुष को जीने का समान अधिकार देता है, हमें धिक्कार है, हम ऐसा नहीं होने दे सके, हमने संविधान को लाचार नपुंसक बना दिया है /

बहुत ही भावनात्मक आलेख है , बधाई ।

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