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हिम शिखर से तू आती हो
गंगा सागर तक जाती हो
सारी नदियाँ तुमसे मिलकर
गंगा बन आगे बढ़ती है
                 गंगा तू सुखदायिनी
स्वर्गलोक से पाप हरने
धरती पर तू सतत बहने
सगर पुत्रों को मोक्ष देने
शिव जटा  से आयी हो
               गंगा तू मोक्ष दायिनी
जड़ी बूटी तू साथ लिए
कल -कल छल -छल बहती हो
जाति -धर्म का भेद न जाने
तत्पर पल -पल रहती हो
               गंगा तू आनंद दायिनी
दूर करो माँ कटुता पशुता
भर आयी जो जन -जन में
तेरे जल से अर्पण -तर्पण
प्रेम भरो माँ  तन -मन में
               गंगा तू जीवन दायिनी
माफ़ करो मुझ कलिपुत्र को
पत्थर रख प्रवाह अवरूध किया
लोभ मूढता स्वार्थ वशीभूत
तेरे जल को अशुद्ध किया
               गंगा तू अन्न दायिनी
शहर बसी है तेरे तट पर
अन्न जल रोजगार दिया
शहरवासी के कचड़े ने
खुद को ही शर्मसार किया
                गंगा तू क्षमा दायिनी
भीष्म भागीरथ याद  कर, माँ तुझे शत -शत नमन
विश्व विजयी भारत बने , माँ तुझे शत -शत नमन
               
                     शुभ्रा शर्मा  

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Comment by shubhra sharma on July 30, 2013 at 10:10am

आदरणीय योगी सारस्वत जी , बिलकुल सही कहा है आपने , बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by Yogi Saraswat on March 19, 2013 at 2:48pm

जड़ी बूटी तू साथ लिए
कल -कल छल -छल बहती हो
जाति -धर्म का भेद न जाने
तत्पर पल -पल रहती हो
               गंगा तू आनंद दायिनी
दूर करो माँ कटुता पशुता
भर आयी जो जन -जन में
तेरे जल से अर्पण -तर्पण
प्रेम भरो माँ  तन -मन में
               गंगा तू जीवन दायिनी

इस जीवन दयानी गंगा को हम अब जीवन लेने वाली बना देने पर उतारू हैं

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