For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम्हारा मेरा होना 
जैसे न होना एक सदी का 
वक्त के परतों के भीतर 
एक इतिहास दबा सा |
जैसे पाषाण के बर्तनों मे 
अधपका हुआ सा खाना 
और गुफा मे एक चूल्हा 
और चूल्हे में आग का होना | 
तुम्हारा मेरा होना 
जैसे खंडहर की सिलाब में 
बीती बारिश का रिमझिम होना
और दीवारों की नक्काशियों में 
मुस्कुराते हुए चेहरों का होना.............

तुम्हारा होना 
जैसे कोयले की अंगार के पीछे 
हरियाले बरगद की छाँव का होना 
जहाँ सकुन की शीतल छाया में 
कुछ पल तेरा मेरा होना ...
तुम्हारा मेरा होना 
समय रेखा के दूसरे छोर तक 
जैसे धरती के सीने से प्रस्फुटित
अंकुरित नवकोपल में 
एक बरगद का होना  ..................
तुम्हारा होना होगा 
जैसे सोंधी खुश्बू माटी की 
कि बारिश का होना एक अरसे सूखे के बाद 
कि जैसे महकती हुई बासमती,

किसी भूख से भरी लंबी दोपहर के बाद 
कि जैसे एक सूखी सुराही में 
भर दिया हो पानी 
सौंधी खुश्बू से सुराही महक रही हो
और पानी हो जाय मीठा और शीतल 
और जैसे जन्मों की प्यास बुझाने का संकल्प हो गए हो तुम |

तुम्हारा मेरा होना, जैसे होना रहा हो 
सूत्रधार प्राचीनतम इतिहास का 
जैसे दो रूहों से संस्कृति का उदय होना 
और तुम आज में स्पंदन हो मेरे 
जिससे धडक रहा है दिल देह के भीतर 
और तुम्हारा भविष्य में खोना होगा मेरा, तुम्हारे इतिहास में होना ............... 
पूर्वार्ध मे भी तुम थे उत्तरार्ध में भी होंगे 
आदि भी तुम थे अनादी भी तुम हो और तुम्ही रहोगो क्रमशः 

तुम मेरे आगे और मैं तुम्हारे आगे 
और तुम मेरे पीछे और मैं तुम्हारे पीछे 

इस ब्रह्मांड की परिधि में
एक दूजे की परछाई से  
जन्मों से जन्मों तक
इस मिट्टी को जीवन देते  
कतरा कतरा रूह बन कर|
तुम्हारा मेरा होना 
होगा शास्वत निरंतर 
सृष्टि से सृष्टि तक 
पुनश्च पुनश्च क्रमशः |............... ~nutan~

Views: 553

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 6, 2013 at 8:32am

आदरणीया डॉ. नूतन जी बहुत सुन्दर आत्मभावों की प्रस्तुति. सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on June 3, 2013 at 10:07am

भाव बिम्बों को जीती इस रचना और आपके प्रयास को मेरी बधाई!

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on June 1, 2013 at 6:49pm

आदणीय सौरभ जी... आपकी टिप्पणी निस्संदेह कविता को एक नया आयाम देती है... आपका तहेदिल शुक्रिया  ... 

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on June 1, 2013 at 6:47pm

आदरणीय विजय निकोर जी आपको सादर धन्यवाद .. 

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on June 1, 2013 at 6:47pm

धन्यवाद राम शिरोमणि पाठक जी... आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 30, 2013 at 1:47pm

इच्छित, प्राप्य और प्राप्त के बीच के भाव को जीती मनोदशा अवगुंठित पहलुओं के परे झाँकने का प्रयास करती हुई कई सुन्दर बिम्ब पाती जाती है.  इस बेहतर प्रयास और साझा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया.. .

सादर

Comment by vijay nikore on May 30, 2013 at 7:02am

आदरणीया नूतन जी:

 

// तुम्हारा होना 
जैसे कोयले की अंगार के पीछे 
हरियाले बरगद की छाँव का होना 
जहाँ सकुन की शीतल छाया में 
कुछ पल तेरा मेरा होना ...//

 

सारी कविता में भाव अच्छे लगे।

शत-शत बधाई।

 

विजय निकोर

 

Comment by ram shiromani pathak on May 29, 2013 at 6:47pm

बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on May 29, 2013 at 3:52pm

धन्यवाद आदरणीय कुंती मुखर्जी जी...

Comment by coontee mukerji on May 29, 2013 at 2:36pm

तुम मेरे आगे और मैं तुम्हारे आगे 
और तुम मेरे पीछे और मैं तुम्हारे पीछे  इस ब्रह्मांड की परिधि में
एक दूजे की परछाई से  
जन्मों से जन्मों तक
इस मिट्टी को जीवन देते  
कतरा कतरा रूह बन कर|
तुम्हारा मेरा होना 
होगा शास्वत निरंतर 
सृष्टि से सृष्टि तक 
पुनश्च पुनश्च क्रमशः |............बहुत सुंदर  और सुखद एहसास एहसास है........तेरा मेरा होना ...नुतन जी ./  सादर /  कुंती .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
23 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
23 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service