हम अपने अपने हिस्से का पानी लिए जिए जा रहें है...
देह में मचलता हुआ, लहू में बहता हुआ
और लोग जो अपनों के साथ हर सुख दुःख मे ढल जाते हैं
हर उस आकार में जिसमें
उस घडी उनका अपना उन्हें होना देखना चाहता है
वह उनके लिए पानी सा हो जातें है .......
तो है न यह अपनों का संसार|
फिर तुम मैं
कहाँ .... दो किनारों से
अपने अपने हिस्से के पानी के साथ बढते हुए, उन्हें थामे हुए|
कभी न मिलने के लिए|
और मैं हर रोज एक अंजुली में पानी को भर
देख लेती हूँ किनारे को भिगोता हुआ एक सम्पूर्ण सागर
और किनारे जो कही भी अलग नहीं
समान्तर नहीं
वर्तुलाकार में एक साथ चलते और मिलते हुए
और उस सागर में होते हो तुम और तुम्हारा प्रतिबिम्ब
एक घूंट मैं आचमन कर लेती हूँ
बाकी से खुद को भिगो देती हूँ ................. ~nutan~
Comment
सुंदर बिम्बों को लेकर रची गयी रचना … वाह सुंदर सुंदर!
बधाई आदरणीया नूतन जी!
सुंदर.....बधाई
kya imagination hai ..wah meri taraf se hardik badhayee sweekarein
और मैं हर रोज एक अंजुली में पानी को भर
देख लेती हूँ किनारे को भिगोता हुआ एक सम्पूर्ण सागर
और किनारे जो कही भी अलग नहीं
समान्तर नहीं
वर्तुलाकार में एक साथ चलते और मिलते हुए
और उस सागर में होते हो तुम और तुम्हारा प्रतिबिम्ब
एक घूंट मैं आचमन कर लेती हूँ
बाकी से खुद को भिगो देती हूँ .................
वाह !! बहुत ही सुंदर .. बधाई आपको
प्रिय सखी नूतन जी आपकी इस रचना पर अभी अभी ध्यान गया, बहुत ही सुन्दर बिम्बों में गुंथे भाव दिल तक पंहुच गए बहुत सुन्दर वाह वाह बहुत बधाई आपको |
बहुत सुंदर तथा मार्मिक अहसास से पिरोयी हुई कविता ॥
आदरणीया नूतन जी:
//
और मैं हर रोज एक अंजुली में पानी को भर
देख लेती हूँ किनारे को भिगोता हुआ एक सम्पूर्ण सागर
और किनारे जो कही भी अलग नहीं
समान्तर नहीं//
आपकी कविताएँ मार्मिक भाव से भरपूर हैं,
अत: अच्छी लगती हैं।
हार्दिक बधाई।
विजय निकोर
बहुत ही सुंदर रचना जिसका हर शब्द अनुभवों के स्याही में डूबी हुई है .नुतन जी , आपकी लेखनी की कोई सानी नहीं...सादर / कुंती .
अतुकांत शैली में रचित यह रचना अपने उच्च बिम्ब और मजबूत कथ्य से बरबस ध्यान खींचती है, अच्छी और भाव प्रधान अभिव्यक्ति पर बधाई आदरणीया डॉ नूतन गैरोला जी ।
बिंम्ब के धागों से स्नेह को बांधती सुन्दर रचना आदरणीया नूतन जी सादर बधाई स्वीकारें.
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