तुम्हारा मेरा होना
जैसे न होना एक सदी का
वक्त के परतों के भीतर
एक इतिहास दबा सा |
जैसे पाषाण के बर्तनों मे
अधपका हुआ सा खाना
और गुफा मे एक चूल्हा
और चूल्हे में आग का होना |
तुम्हारा मेरा होना
जैसे खंडहर की सिलाब में
बीती बारिश का रिमझिम होना
और दीवारों की नक्काशियों में
मुस्कुराते हुए चेहरों का होना.............
तुम्हारा होना
जैसे कोयले की अंगार के पीछे
हरियाले बरगद की छाँव का होना
जहाँ सकुन की शीतल छाया में
कुछ पल तेरा मेरा होना ...
तुम्हारा मेरा होना
समय रेखा के दूसरे छोर तक
जैसे धरती के सीने से प्रस्फुटित
अंकुरित नवकोपल में
एक बरगद का होना ..................
तुम्हारा होना होगा
जैसे सोंधी खुश्बू माटी की
कि बारिश का होना एक अरसे सूखे के बाद
कि जैसे महकती हुई बासमती,
किसी भूख से भरी लंबी दोपहर के बाद
कि जैसे एक सूखी सुराही में
भर दिया हो पानी
सौंधी खुश्बू से सुराही महक रही हो
और पानी हो जाय मीठा और शीतल
और जैसे जन्मों की प्यास बुझाने का संकल्प हो गए हो तुम |
तुम्हारा मेरा होना, जैसे होना रहा हो
सूत्रधार प्राचीनतम इतिहास का
जैसे दो रूहों से संस्कृति का उदय होना
और तुम आज में स्पंदन हो मेरे
जिससे धडक रहा है दिल देह के भीतर
और तुम्हारा भविष्य में खोना होगा मेरा, तुम्हारे इतिहास में होना ...............
पूर्वार्ध मे भी तुम थे उत्तरार्ध में भी होंगे
आदि भी तुम थे अनादी भी तुम हो और तुम्ही रहोगो क्रमशः
तुम मेरे आगे और मैं तुम्हारे आगे
और तुम मेरे पीछे और मैं तुम्हारे पीछे
इस ब्रह्मांड की परिधि में
एक दूजे की परछाई से
जन्मों से जन्मों तक
इस मिट्टी को जीवन देते
कतरा कतरा रूह बन कर|
तुम्हारा मेरा होना
होगा शास्वत निरंतर
सृष्टि से सृष्टि तक
पुनश्च पुनश्च क्रमशः |............... ~nutan~
Comment
आदरणीया डॉ. नूतन जी बहुत सुन्दर आत्मभावों की प्रस्तुति. सादर बधाई स्वीकारें.
भाव बिम्बों को जीती इस रचना और आपके प्रयास को मेरी बधाई!
आदणीय सौरभ जी... आपकी टिप्पणी निस्संदेह कविता को एक नया आयाम देती है... आपका तहेदिल शुक्रिया ...
आदरणीय विजय निकोर जी आपको सादर धन्यवाद ..
धन्यवाद राम शिरोमणि पाठक जी... आभार
इच्छित, प्राप्य और प्राप्त के बीच के भाव को जीती मनोदशा अवगुंठित पहलुओं के परे झाँकने का प्रयास करती हुई कई सुन्दर बिम्ब पाती जाती है. इस बेहतर प्रयास और साझा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया.. .
सादर
आदरणीया नूतन जी:
// तुम्हारा होना
जैसे कोयले की अंगार के पीछे
हरियाले बरगद की छाँव का होना
जहाँ सकुन की शीतल छाया में
कुछ पल तेरा मेरा होना ...//
सारी कविता में भाव अच्छे लगे।
शत-शत बधाई।
विजय निकोर
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें
धन्यवाद आदरणीय कुंती मुखर्जी जी...
तुम मेरे आगे और मैं तुम्हारे आगे
और तुम मेरे पीछे और मैं तुम्हारे पीछे इस ब्रह्मांड की परिधि में
एक दूजे की परछाई से
जन्मों से जन्मों तक
इस मिट्टी को जीवन देते
कतरा कतरा रूह बन कर|
तुम्हारा मेरा होना
होगा शास्वत निरंतर
सृष्टि से सृष्टि तक
पुनश्च पुनश्च क्रमशः |............बहुत सुंदर और सुखद एहसास एहसास है........तेरा मेरा होना ...नुतन जी ./ सादर / कुंती .
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