For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दान का माहात्म्य

दान का माहात्म्य
मैं बचपन से अपनी माँ के साथ प्रवचन संकीर्तन में जाती थी . वहाँ दान की महिमा खूब गहराई से
समझायी जाती थी . मुझे ईश्वर भक्तों पर अपार श्रद्धा होती . बड़ी होकर जब मैं कमाने योग्य हुई तब अपने वेतन के पैसों का एक हिस्सा दान कर देती . बहुत जल्द ही मैं मशहूर हो गयी . आये दिन भक्तों का मेला मेरे घर में लगा रहता . उनकी सेवा कर मैं धन्य हो जाती .
मेरे गाँव में ISKCON ने भव्य मंदिर के साथ एक आश्रम बनाया . उसमें बहुत सारे भक्त रहने लगे . वहाँ दान की प्रक्रिया खूब चलती . आये दिन कोई न कोई कार्यक्रम चलता रहता . मैं दिल खोलकर सहयोग देती . कृष्ण जन्माष्टमी जब भी आता कोई भक्त आता और कहता – “ माताजी हमें इतना दूध , इतना मक्खन चाहिये .’’
“ हाँ हाँ कोई और सेवा हो तो कहिये ‘’ मैं गद्गद होकर कहती . उसके दूसरे दिन कोई दूसरा भक्त आता और कहता “ माता जी , हमें कृष्ण भगवान के श्रृंगार के लिये इतने रूपये चाहिये .”
मैं चेक साइन कर के दे देती . रकम की माँग बहुत ऊँची होती . मेरा दानी होने का खूब प्रचार होता. जलने वाले कहते - “ माँ बाप के मुफ़्त का माल इसके पास है क्या करेगी कोई खानेवाला तो है नहीं , इसीलिये तो इतना धन लुटाती है .''
मैं इन आलोचनाओं की कोई परवाह नहीं करती .
कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व आने वाला था . ISKCON के कार्यकर्ताओं ने दान लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी . एक भक्त आया और पहले से निर्धारित रकम लेकर चला गया . उसी शाम मैं अपनी दस साल पुरानी रेनो गाड़ी लेकर बाहर निकली . रास्ते में मेरी गाड़ी अचानक रूक गयी . देखा टंकी में पेट्रोल नहीं है . मैंने अपना बटुवा खोला तो देखा उसमें भी पैसा नहीं है . मैं इधर उधर मदद के लिये देखने लगी . सामने ही एक पेट्रोल पंप था. जो भक्त शाम को मेरे यहाँ दान लेने आया था वह अपनी नयी चमचमाती टोयोटा कोरोला गाड़ी में पेट्रोल भरवा रहा था . इससे पहले मैं उससे मदद माँगती वह तेज़ रफ़्तार से यह कहते हुए निकल गया - '' सॉरी माता जी मुझे दान लेने जाना है .''
मुझे दान का माहात्म्य समझ में आ गया.
(मौलिक व अप्रकाशित रचना)

Views: 527

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by coontee mukerji on June 9, 2013 at 4:59pm

आपकी बात एकदम  सही है माथुर जी .मुझे लगता है हम ही लोग इसके दोषी भी है उनके अनुचित माँग को बढ़ावा देकर.

Comment by D P Mathur on June 8, 2013 at 10:58am

मेरा ऐसा मानना है , दरअसल दान मांगने वाले पंडित दो तरह के होते हैं , यह हमें पहचानने की कोशिश करनी होगी किसे दान देना है , ये बात भी सही है कि हमें दान करना भी जरूरी है लेकिन एक सीमा से अधिक मांगने वाले का आकलन जरूर कर लेना चाहिए  !

Comment by coontee mukerji on June 8, 2013 at 10:07am

वेदिका जी , अगर ब्राह्मण हमारे घर में पूजा करते हैं तो उन का पारिश्रमिक देना और कुछ दान देना हमारी कर्तव्य बनता है.क्योंकि यह उनका प्रोफ़ेशन है. हाँ धर्म के नाम पर किसी को लूटना गलत है.

Comment by coontee mukerji on June 8, 2013 at 10:01am

राजेश जी , विजय जी , क्या बताउँ.....मैं खूब बेवकूफ़ बनी थी , झूठ के आडम्बर में.......लेकिन क्या माँगने का डिप्लोमासी होता है .....दाद देनी पड़ती है .अपने आलोचकों को बताया  नहीं अन्यथा खूब मेरा मखौल  उड़ाते .आपनी बात डायरी में लिख ली.....और आज पंद्रह साल बाद उजागर कर रही हूँ.......आज सोचती हूँ उन पैसों से मैं किसी की शिक्षा का भार आसानी से उठा सकती थी .......खैर ....मेरी माँ यह भी कहती थी गयी हुई बातों पर शोक नहीं बनाना चाहिये .

Comment by vijay nikore on June 7, 2013 at 11:52pm

कुंती जी, हम सभी कितना कुछ भावनाओं में बह कर करते हैं,

परन्तु कई और हैं जो हमारी भावनाओं का फ़ायदा उठाते हैं।

 

साझा करने के लिए धन्यवाद।

 

विजय निकोर

Comment by राजेश 'मृदु' on June 7, 2013 at 6:04pm

दान के बारे में शास्‍त्रों का कथन है कि मानव मात्र के कल्‍याण के लिए ही दान दें एवं उसके लिए भी पात्रता निश्चित है । आपने जहां दान दिया वो धनकुबेर का अखाड़ा है

Comment by वेदिका on June 7, 2013 at 3:59pm

मै भी आश्चर्य चकित रह जाती हूँ ..जब पंडित पूजा के पहले मोल भाव करवाने घर आ जाते है और सब परिजन उनको ओके कर देते है। 

जब मै पूछती हूँ कि ऐसा क्यों ...तो उत्तर मिलता है की धर्म के कार्यों में टोकना उचित नही। चलो बढिया है ...!!!
सार्थक संदेश देती लघुकथा पर शुभकामनायें   
Comment by Abid ali mansoori on June 7, 2013 at 3:23pm
Badhayi sweekarein aadarniya coontee ji..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service