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आपने चाहा ही नहीं दर्द का दरमां होना 
कितना आसान था दुश्वार का आसां होना 

.
आपका हुस्न तो खुद होश उड़ा देता 
आपको ज़ेब नहीं देता है हैरां होना 

.
नाम ए मर्ग है फूलों के लिए काली घटा 
दोशे गुलनार पे ज़ुल्फों का परेशां होना

.
वक़्त वो दोस्त है जो पल में बदल जाता है 
भूल से भी न कभी वक़्त पे नाजां होना 

.
दिल पे अज्ञात के जो गुजरा है वो ज़ाहिर है 
इस तरह आप का लहरा के पेरीजां होना 

.
ज़ेब = शोभा , नाजाँ = गरवान्वित , दरमां = उपचार

 

देखो हर सू कैसे मंज़र दिखते हैं
लोगों के हाथों में पत्थर दिखते हैं

.
कैसे दिल का दर्द छिपा पाएंगे वो 
उन आँखों में खुश्क समंदर दिखते हैं 

.
दुनिया की नज़रों में हम कैसे भी हों
माँ की आँखों में हम सुंदर दिखते हैं

.
लूट लिए हैं जिसने होश हवास मेरे 
मुझ को वो ख्वाबों में अक्सर दिखते हैं

.
केवल मन का भ्रम है ये अज्ञात तेरे 
दूर जो मिलते धरती अंबर दिखते हैं

.

(मौलिक/अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 26, 2013 at 11:30am
आदरणीय..अजय जी, उम्दा गजल के लिए दाद कुबूल कीजीए ..वाह! वक्त वो दोस्त है जो पल में बदल जाता है, भूल से भी न कभी वक्त पे नाजां होना...बहुत खूब आदरणीय 'लूट लिए है जिसने होश हवास मेरे, मुझ को वो ख्वाबों में अक्सर दिखते है..केवल मन का भ्रम है ये अग्यात तेरे,दूर जो मिलते धरती अंबर दिखते है....बहुत सुंदर आदरणीय
Comment by shalini rastogi on June 26, 2013 at 9:24am

अजय कुमार जी .. दोनों ही गज़लें बेहद खूबसूरत बन पड़ी हैं .. हरेक अश'आर दिल छू गया .. विशेष तौर पर दूसरी गज़ल तो बेहद पसंद आई .. इन दोनों अश'आरों  के लिए दिली दाद क़ुबूल करें-

कैसे दिल का दर्द छिपा पाएंगे वो 
उन आँखों में खुश्क समंदर दिखते हैं 

.
दुनिया की नज़रों में हम कैसे भी हों
माँ की आँखों में हम सुंदर दिखते हैं... लाजवाब!

हार्दिक बधाई 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 25, 2013 at 10:18pm

आ0 अजय भाई जी,  ...अतिसुन्दर...गजलें हुई हैं।  हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by mrs manjari pandey on June 23, 2013 at 4:48pm

            आदरणीय अजय जी, बधाई सुंदर ग़ज़लों के लिये. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 21, 2013 at 1:46pm

बहुत खूब आदरणीय अजय भाईजी.  दोनों ग़ज़लों पर दिल से दाद कुबूल करें .

ग़ज़लों के मिसरों के वज़्न ग़ज़ल के साथ देने का ओबीओ पर आग्रह रहता है. 

सादर

Comment by Abhinav Arun on June 20, 2013 at 10:25pm

बहुत ख़ूब अजय जी -

दुनिया की नज़रों में हम कैसे भी हों
माँ की आँखों में हम सुंदर दिखते हैं

लाजवाब शेर हुआ है ग़ज़लों की कामयाबी के लिए बहुत बधाई !!

Comment by Ajay Agyat on June 20, 2013 at 10:22pm
शुक्रिया दोस्तो
Comment by अरुन 'अनन्त' on June 19, 2013 at 9:35pm

वाह आदरणीय वाह दोनों की दोनों ग़ज़लें अत्यंत मनोहारी हुई हैं, सभी के सभी अशआर जानदार शानदार लाजवाब हैं हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by coontee mukerji on June 19, 2013 at 5:54pm

आपका हुस्न तो खुद होश उड़ा देता 
आपको ज़ेब नहीं देता है हैरां होना.............

देखो हर सू कैसे मंज़र दिखते हैं
लोगों के हाथों में पत्थर दिखते हैं

.जिंदगी  के फ़लसफ़े बयां करते बहुत ही दमदार गज़लें.

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