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ख्वाबों में हमने देखी एक दुनिया थी
हमराही थे वहां पे सारी खुशियाँ थीं
उम्मीद भरी इस आँखों से उनके लिए मचलते गए
हम चलते गए

अनजाने उस हमसफ़र की तलाश थी
होगा जहाँ से प्यारा दिल में आस थी
ढूँढने को उसे छोड़ा सब राहों में
गिर गिर के भी सम्हलते गए
हम चलते गए

सफ़र में इन राहों से पहचान हो गयी
अनजान जिंदगी आखरी अरमान हो गयी
तसवीरें टूट गयीं जो अपने सपनो की
हकीकत में ही ढलते गए
हम चलते गए

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Comment

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Comment by Bhasker Agrawal on December 30, 2010 at 10:08pm

लता जी..

हमारे सपने ही हमें वो बनाते हैं जो हम हैं..आजकल मेरा ऐसा मानना है..

हकीकत तो एक समझने समझाने का शब्द है...धन्यवाद

Comment by Bhasker Agrawal on December 30, 2010 at 5:28pm
धन्यवाद वीरेंद्र जी
Comment by Veerendra Jain on December 30, 2010 at 4:51pm
waah... kya baat hai.. bhaskar ji...bahut hi umda rachna... bahut bahut badhai...
Comment by Lata R.Ojha on December 30, 2010 at 3:19pm

तसवीरें टूट गयीं जो अपने सपनो की
हकीकत में ही ढलते गए

अक्सर जीवन में सभी के साथ ऐसा होता है..मज़ा तो तब है जब हक़ीकत को भी कभी सपनो के रंग में रंग सकें..ऐसा होता तो कम ही है ..लेकिन. होता तो है . है ना :) खूबसूरत रचना .. 

Comment by Bhasker Agrawal on December 30, 2010 at 3:17pm
धन्यवाद

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 30, 2010 at 3:00pm
//गिर गिर के भी सम्हलते गए
हम चलते गए// बहुत खूब भास्कर भाई !

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