For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रेम-प्रेम की रट लगी, मर्म न जाने कोय!

देह-पिपासा जब जगी, गए देह में खोय!

 

मीरा का भी प्रेम था, गिरधर में मन-प्राण!

राधा भी थी खो गयी, सुन मुरली की तान!!

 

राम चले वनवास को, सीता भी थीं साथ!

बेर चखे थे राम ने, ले शबरी के हाथ!!

 

मन का मन से मेल है, मन का मन से संग!

नेह-डोर पर मन सधा, बिसरा सब तन-अंग!!

 

देह मोह का बंध है, यह माया का जाल!

देह-नशा जब सिर चढ़ा, तब आसा का हाल!!

-        बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1766

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on October 6, 2013 at 8:39pm

आदरणीया गीतिका जी आपका हार्दिक आभार! आपका आशीष पाकर रचना कृतार्थ हुई!

Comment by वेदिका on October 6, 2013 at 2:06pm

उन्नत दोहवली प्रस्तुति करण!

वास्तविकता के हर पहलू पर दोहा लेखन पर बधाई स्वीकारें आ0 बृजेश भाई जी!

Comment by बृजेश नीरज on October 4, 2013 at 9:08am

आदरणीय सौरभ जी आपका हार्दिक आभार! आपके शब्दों से दोहों पर प्रयास करने की हिम्मत बंधी. आगे और बेहतर कर सकूं, ऐसा प्रयास रहेगा!

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2013 at 1:52pm

भाईजी, बहुत शुद्ध और सतर्क दोहे हुए हैं. हृदय से बधाई स्वीकारें.
दूसरे, तीसरे और चौथे दोहे ने तो भाव मुग्ध कर दिया है. शुद्ध, समर्थ अकाट्य दोहे हुए हैं ये !

पहले और आखिरी दोहों को तनिक और विस्तार देना उचित लगा --  

प्रेम-प्रेम की रट लगी, मर्म न जाने कोय!
देह-पिपासा भर समझ, गए देह में खोय!

देह मोह का बंध है, यह माया का जाल !
देह-नशा जब सिर चढ़ा, बेतुक करे सवाल !!

शुभेच्छाएँ.

Comment by बृजेश नीरज on October 2, 2013 at 6:43am

आदरणीय निकोर साहब आपका हार्दिक आभार!

Comment by vijay nikore on October 2, 2013 at 5:14am

प्रेम के दोहे सुन्दर बने हैं, बधाई।

Comment by बृजेश नीरज on October 1, 2013 at 10:37pm

आदरणीया महिमा जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by MAHIMA SHREE on October 1, 2013 at 10:35pm

बेहद उन्नत भाव से पगी सुंदर .... ..दोहावली के लिए बहुत-२ हार्दिक बधाई आदरणीय ब्रिजेश जी

Comment by बृजेश नीरज on October 1, 2013 at 10:35pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 1, 2013 at 10:22pm

अति सुंदर दोहावली, बधाई स्वीकारे आदरणीय बृजेश जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
9 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
yesterday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
yesterday
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service