For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आत्मीयता !!!! (लघु कथा)

शहर के एक नए भाग में पहुँच कर एक गन्तव्य् का पता पूछ रहा था। 
कार से उतरते हुए एक सभ्रांत व्यक्ति को पूछा तो उसने नीचे से ऊपर तक देखा और आगे बढ़ गया। मार्किट की तरफ जा रही एक महिला को पता पूछना चाहा तो सिवाय रुखाई के कुछ न हाथ लगा। कालेज जाने  वाले एक विद्यार्थी को देख उम्मीद जगी पर कोई फायदा नहीं हुआ। पते का कागज हाथ में लिए कुछ सोच ही रहा था कि एक आवाज कानो में पड़ी 'भैय्या बहुत देर से किसे पूछ रहे हो ?'
चौक की सफाई के बाद सुस्ताने बैठी एक सफाई कामगार महिला की आवाज थी। 
मै  उसकी तरफ बढ़ा 
पते का कागज़ देखते ही वह सविस्तार पता समझने लगी । मै भी उसके सद्भाव को नतमस्तक हो सर हिला रहा था। 
'चाहो तो आपको वहाँ तक छोड़ आती हूँ ' वह फिर बोली। 
'ना ! ना ! मै  चला जाउंगा',मैंने कहा। 
उसकी सहृदयता को मै देखता ही रह गया    ....... 
दूसरे दिन सुबह मै अपने बरामदे पे खड़ा था 
मेरे मोहल्ले का सफाई कर्मी सुबह की  सफाई कर अपना पसीना पोछ ही रहा था कि मै  एक पानी से भरी बोतल लेकर उसके पास लपका 
' लो पानी पी लो प्यास लगी होगी '
इतनी आत्मीयता !!!!
वह मुझे देखता ही रह गया। 
पानी की  बोतल से दोनों के हाथ जुड़े थे  …। 
---------------------------------------------------
अविनाश बागड़े 

Views: 641

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shubhranshu Pandey on November 20, 2013 at 9:42am

आदरणीय अविनाश जी,

एक सुन्दर भाव को कथा में पिरोया है..संस्कार और सम्मान किसी भी चीज का मोहताज नहीं होता है...

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 19, 2013 at 6:29pm

एक तार्किक विन्दु को साझा किया है आपने, आदरणीय अविनाशजी.

लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई.

सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 19, 2013 at 11:08am

सामयिक दौर पर दृष्टी डाली जाये तो, शायद आत्मीयता या जिसको मानवता कह लो , अपरिचित स्थानों पर देखने को मिलेगी , बहुत सुन्देश देती लघुकथा पर बधाई स्वीकारें आदरणीय अविनाश जी

Comment by AVINASH S BAGDE on November 19, 2013 at 9:42am
Comment by AVINASH S BAGDE on November 19, 2013 at 9:40am
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 18, 2013 at 2:52pm

आज की शिक्षा और बड़े घरानों के संस्कार पीढ़ी को बदज़ुबान और अकड़बाज बना रही है , कुछ इसी प्रकार की घटना मेरे साथ भी हो चुकी है। बधाई अविनाश भाई सुंदर कथा के लिए।

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 18, 2013 at 1:57pm

आदरणीय अविनाश सर बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है आपने इस लघुकथा के जरिये पढ़कर मन प्रसन्न हो गया बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by AVINASH S BAGDE on November 18, 2013 at 10:44am

आभार सभी सुधि जनो का ---भाई अरुण कुमार निगम ,गिरिराज भंडारी जी और डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव .

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 18, 2013 at 9:26am

आदरणीय अविनाश जी, बहुत दिनों बाद आपको देखना व पढ़ना मन को प्रसन्न कर गया . पनपी हुई तथाकथित नई संस्कृति में संवेदनायें खोई जरूर हैं, मरी नहीं हैं. सुन्दर लघुकथा...............बधाई................   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 17, 2013 at 8:28pm

आदरणीय , सुन्दर भावनाओं को लघुकथा मे पिरोया है आपने !!!! आपको बधाई !!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service