221 2121 1221 212
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय वीनस जी .बहुत दिनों बाद आज मैं पुन जुड़ पा रहा हूँ इसलिए आपके इस मशविरे पर अमल से बंचित रह गया ..मैं आपके मशविरे के अनुरूप पुनः प्रयास करूंगा ..२६ जनवरी पर आपको हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ..बस आपका स्नेह यूं ही मिलता रहे ..सादर
आदरणीय ग़ज़ल तो खूबसूरत है मगर आपने जो अरकान बताया है वो मेरे ख्याल से गलत है ...
ग़ज़ल के अरकान २२१ २१२१ २२ २१२ १२ नहीं हैं बल्कि २२१ / २१२१ / १२२१ / २१२ हैं .. आपके बताये अरकान अनुसार कुछ मिसरे बेबहर हो जा रहे हैं आप इस अरकान अनुसार ग़ज़ल की तक्तीअ करें और जो कुछ मिसरों को दुरुस्त करें
आदरणीय सौरभ सर ..आपके स्नेह और हौसला आफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर
आदरणीया मीना जी आपके उत्साहवर्धक शब्दों के लिए तहे दिल धन्यवाद .
आदरणीय डा.आशुतोष जी, सुन्दर ग़ज़ल हुई है। . हार्दिक बधाई आपको
जय हो. इस रिवायती अंदाज़ में हुई ग़ज़ल के लिए शुभकामनाएँ
इक घूँट जिसने पी कभी कैसे कहे बुरा
हरगिज न हो जवाब ये आदत ख़राब है
लाजवाब गजल आदरणीय डा.आशुतोष जी, यह शेर खास हुआ दाद कुबूल करें
इक घूँट जिसने पी कभी कैसे कहे बुरा
हरगिज न हो जवाब ये आदत ख़राब है
वाह सुन्दर संदेश की ग़ज़ल हेतु बधाई
सादर
हर एक शे'र बेहद उम्दा ... बधाई आप को
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